देखो ! न.. बेचारा नरेश बड़े शहर में नौकरी कर, अपनी पत्नि व् छोटे से बेटे के साथ-साथ गाँव में अपनी बूढी विधवा माँ और दो कुवांरे निकम्मे भाइयों का भी पालन करता रहा. उसने कई बार अपने दोनों भाइयो को काम-धंधे से लगवाया, किन्तु दोनों की मक्कारी और माँ के लाड़-प्यार ने उन्हें हमेशा से कामचोर भी बना रखा था.
हाँ भाई ! अभी पिछले माह ही तो सड़क दुर्घटना में नरेश की मौत हुई थी और देखो तो बेचारे नरेश की विधवा पत्नी और बेटे को घर से बाहर निकाल दिया, दोनों हरामी भाइयों ने. कम से कम ,माँ को तो रोकना था...
जितेन्द्र ‘गीत’
(मौलिक व् अप्रकाशित)
Comment
रचना के मर्म को आपने छुआ, आपका ह्रदय से आभार आदरणीया मीना दीदी.
सादर!
दिल को छूती हुई लघुकथा ..बहुत बहुत बधाई |सस्नेह
आपकी उत्साहवर्धक सराहना से बड़ा मनोबल मिला आदरणीय शुभ्रांशु जी. आपका ह्रदय से आभारी हूँ
सादर !
आदरणीय जितेन्द्र जी,
कथा को आपने याथार्थ के साथ जोड़ कर और मार्मिक बना दिया है.
सुन्दर कथा. एक सुत्रधार की तरह आपने कथा कही है्.
सादर.
आदरणीया छाया जी. आपकी बधाई सहर्ष स्वीकार है, सराहना हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ .
यह लघुकथा मेरी अपने ही घर की है यहाँ जो पात्र नरेश है वो मेरे बहनोई है. केन्द्रीय उत्पाद व् सीमा शुल्क में अधीक्षक के पद पर थे और एक सड़क दुर्घटना में शांत हो गये थे. अपने पीछे एक सात वर्षीय अस्थमा रोग से पीड़ित बेटा, तथा उनके मृत्यु के बाद दीदी जो कि मानसिक रूप से बीमार हो गई थी. किन्तु समय के मलहम ने आज सब सामान्य तो कर दिया है बस दीदी से उनका सब कुछ छीन लिया और उनके बेटे से पिता कि छाँव . और मैंने अपना एक बहुत अच्छा बड़ा भाई खो दिया.
अगल-बगल की बात को कथा में पिरोया है आपने अति उत्तम तरीके से सादर बधाई स्वीकारें जीतेन्द्र "गीत" जी नमन !
आपकी बधाई सहर्ष स्वीकार है आदरणीय लक्ष्मण जी. आपका ह्रदय से आभार
सादर!
आ० भाई जीतेन्द्र जी , इस बेहतरीन सत्यकथा पर ढेरों बधाई .
रचना के मर्म को आपने छुआ, आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीया कल्पना दीदी. स्नेह बनाये रखियेगा
सादर!
रचना पर आपकी सराहना हेतु आपका हार्दिक आभार आदरणीया सविता जी
सादर!
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