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" भाई! रामौतार.. यह साल तो खेती के हिसाब से बहुत ही बढ़िया रहा. काश! ऐसा हर साल ही होता  रहे "     दिनेश ने अपनी हथेली पर तंबाकू मे चूना लगाकर , रगड़ते हुए कहा

" हाँ भाई! दिनेश.. सच इस बार, हर साल की तुलना मे अतिवृष्टि से थोड़ी कम फसल ज़रूर हुई लेकिन लोक-सभा और विधान- सभा चुनाव के रहते सरकारों ने खूब मुआवज़ा भी दिया और फसल बीमा को भी मंज़ूरी  दिलवाई , तो देखो न! दोगुने से भी ज्यादा बचत हो गई " रामौतार ने दिनेश की हथेली पर से मली हुई तंबाकू अपने मुंह में दबाते हुए कहा

 

जितेंद्र 'गीत'

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 16, 2014 at 8:56pm

आपका कहना एकदम सही है आदरणीय अखिलेश जी. बस अपना मुनाफा होना चाहिए इंसानी पेट जो है शायद कभी नही भर पाता, चुनावों में आने वाले खर्च और समस्याओं से भी कोई मतलब नही.

लघुकथा पर आपकी प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ, स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by अखिलेश कृष्ण श्रीवास्तव on September 16, 2014 at 2:11pm

आदरणीय जितेन्द्र भाई, 

पशु मरे , इंसान मरे या फसल मरे ( अनाज कम हो ) किसी न किसी वर्ग को फायदा हो ही जाता है। सरकारी अमला भी  इस योजना से अपने लिए  कुछ निकाल लिया होगा । वहाँ तंबाकू की जगह दारू का दौर चला होगा। 

बधाई 

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