For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

रमेश अपने बेटे व् त्यौहार पर आई हुई अपनी बहन के बेटे को, लेकर बाजार गया था, उसकी बहन कल अपने घर जाने वाली है. सोचा शायद उसके बेटे को कुछ दिलवा दिया जाये, उसे कुछ सस्ते से कपडे  एक दुकान से दिला लाया है. बहन के बेटे ने भी निसंकोच उन्हें स्वीकार कर लिया.  बाजार में रमेश का बेटा जिद करता रहा पर ,  उसने   अपने बेटे को कुछ नही दिलवाया है ...

“ पापा..!! मुझे तो वो ही वाले ब्रांड के कपडे चाहिए जो मैंने पसंद किये थे, कुछ भी हो उसी दुकान से दिलवाना पड़ेगा आपको..” रमेश के बेटे ने,  रमेश से कहा

 

“ बेटा!! इधर आओ, सुनो! जरा मेरी बात.. हम तुम्हे कल वो ही कपड़े दिला लायेंगे, जरा तुम्हारी भुआ को चले जाने दो उनके घर. आज इसलिए तुम्हे वो कपडे नहीं दिलवाए क्युकी वो महंगे थे. फिर भुआ के बेटे को भी....” रमेश ने बड़े ही प्यार से अपने बेटे को पास बुलाकर धीरे से कहा

 

   

      जितेन्द्र ‘गीत’

(मौलिक व् अप्रकाशित)

Views: 554

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on September 1, 2014 at 11:03pm

लघुकथा पर आपकी बधाई सहर्ष स्वीकार है, आदरणीय सौरभ जी.आपका ह्रदय से आभार , स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर !


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on September 1, 2014 at 2:25pm

वाह ! 

परिवार के सदस्यों की आम हो गयी एक घृणित मनोदशा को सुन्दर शब्द मिले हैं
बधाई

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 30, 2014 at 11:05pm

 आदरणीय डा.गोपाल जी, आपका कहना मैं बिलकुल समझ गया. किन्तु एक ओर बात मुझे अक्सर देखने को मिली है कि जब माता -पिता अपने १०-१५ वर्षों के बच्चों के साथ जब अपना जीवन व्यतीत करते है तब वो हमेशा सारे रिश्तेदारों या समाज से कुछ दूर से हो जाते है. उस समय के चलते शायद वो अपनी दुनिया में ऐसे मगन रहते है कि सब कुछ भूलने की कगार पर पहुँच जाते है. किन्तु जब उन्हें आगे चलकर उन्ही लोगों की आवश्यकता पड़ती है तो अपने आप को असुरक्षित सा समझने लगते है. यह मेरी सोच भी हो सकती है कृपया अपना प्रतिउत्तर देंगें तो बड़ी मेहरबानी होगी. स्नेह व् आशीर्वाद बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on August 30, 2014 at 5:09pm

जीतू जी

सत्य है पर कटु i  हम सब यही करते हैं I  सोचते है दान पर क्यों  व्यर्थ धन गवायें i परिश्रम से अर्जित पूंजी अपने परिवार पर लगे i यह ऐसा इसलिए भी है कि एक अगर उदार बन भी जाय तो  समाज से उसे वह उदारता नहीं मिलती I  जब सारा समाज ही अनुदार है तो  हमी क्यों उदार बने i  बहुत सी बाते हैं समझने के लिए i

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 30, 2014 at 2:19pm

आदरणीय शुभ्रांशु जी, लघुकथा पर आपकी स्नेहिल प्रतिक्रिया हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ. आप सही कह रहे हैं आजकल एक तराजू ही जो सब कुछ तौल रहा है. शुरुआत भी हो चुकी है उस बच्चे के मन में यह भर दिया गया है की जब जब रिश्तेदार आते है उसकी स्वतंत्रता भंग होगी और उसे समझोते भी करने पड़ेंगे. बस अगली बार से वो स्वयम दूरियां बनाने लगेगा. स्नेह व् मार्गदर्शन बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on August 30, 2014 at 2:09pm

लघुकथा पर आपकी गहन पाठक धर्मिता हेतु आपका ह्रदय से आभारी हूँ आदरणीया राजेश दीदी. बस यही ओपचारिकता सिर्फ ओपचारिकता बनकर रह जाती है आज भी और कल जब आपका समय आएगा तब भी. स्नेह बनाये रखियेगा

सादर!

Comment by Shubhranshu Pandey on August 30, 2014 at 10:58am

आदरणीय जितेन्द्र जी.

सुन्दर कथा.बधाई.

कथा का शीर्षक अपने आप में कथा के पक्ष को बताता है.  अपने और बहन के लड़के के बीच दूरी की शुरुआत उसी समय से हो गयी.

किसी भी सम्बन्ध में जब प्यार और सम्मान को नापने की तराजु उपहार के दाम हो जायें तो सम्बन्ध फ़िर अत्मीय नहीं रह जाते बस निभाये जाते हैं.

सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on August 29, 2014 at 9:29pm

आपने घर घर की कहानी की एक कमजोर नब्ज को पकड़ा है रिश्ते औपचारिकता भर रह गए हैं दोहरी मानसिकता ,स्वार्थ के आगे रिश्ते दम भरते हैं ,इस लघु कथा के लिए हार्दिक बधाई 

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Aazi Tamaam commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"शुक्रिया आदरणीय चेतन जी इस हौसला अफ़ज़ाई के लिए तीसरे का सानी स्पष्ट करने की कोशिश जारी है ताज में…"
2 hours ago
Chetan Prakash commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post अस्थिपिंजर (लघुकविता)
"संवेदनाहीन और क्रूरता का बखान भी कविता हो सकती है, पहली बार जाना !  औचित्य काव्य  / कविता…"
7 hours ago
Chetan Prakash commented on Aazi Tamaam's blog post ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के
"अच्छी ग़ज़ल हुई, भाई  आज़ी तमाम! लेकिन तीसरे शे'र के सानी का भाव  स्पष्ट  नहीं…"
22 hours ago

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on surender insan's blog post जो समझता रहा कि है रब वो।
"आदरणीय सुरेद्र इन्सान जी, आपकी प्रस्तुति के लिए बधाई।  मतला प्रभावी हुआ है. अलबत्ता,…"
yesterday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"आदरणीय सौरभ जी आपके ज्ञान प्रकाश से मेरा सृजन समृद्ध हुआ । हार्दिक आभार आदरणीय जी"
yesterday
Aazi Tamaam posted a blog post

ग़ज़ल: चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल के

२२ २२ २२ २२ २२ २चार पहर कट जाएँ अगर जो मुश्किल केहो जाएँ आसान रास्ते मंज़िल केहर पल अपना जिगर जलाना…See More
Wednesday
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-182

परम आत्मीय स्वजन,ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरे के 182 वें अंक में आपका हार्दिक स्वागत है| इस बार का…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey added a discussion to the group भोजपुरी साहित्य
Thumbnail

गजल - सीसा टूटल रउआ पाछा // --सौरभ

२२ २२ २२ २२  आपन पहिले नाता पाछानाहक गइनीं उनका पाछा  का दइबा का आङन मीलल राहू-केतू आगा-पाछा  कवना…See More
Wednesday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया. . . .
"सुझावों को मान देने के लिए हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय सुशील सरना जी.  पहला पद अब सच में बेहतर हो…"
Wednesday
Sushil Sarna posted a blog post

कुंडलिया. . . .

 धोते -धोते पाप को, थकी गंग की धार । कैसे होगा जीव का, इस जग में उद्धार । इस जग में उद्धार , धर्म…See More
Wednesday
Aazi Tamaam commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post सुखों को तराजू में मत तोल सिक्के-लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर'
"एकदम अलग अंदाज़ में धामी सर कमाल की रचना हुई है बहुत ख़ूब बधाई बस महल को तिजोरी रहा खोल सिक्के लाइन…"
Tuesday
surender insan posted a blog post

जो समझता रहा कि है रब वो।

2122 1212 221देख लो महज़ ख़ाक है अब वो। जो समझता रहा कि है रब वो।।2हो जरूरत तो खोलता लब वो। बात करता…See More
Tuesday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service