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मातृभक्ति गुंजित स्वर तेरे, सिंहनाद सा करते हैं,,

तेरा साहस शौर्य देख, तेरे भय से शत्रु मरते हैं । 

वेग तेरी आशा का भारी, है आंधी तूफानों पर,,

तेज तेरे चेहरे का भारी,  बिजली की मुस्कानों पर । 

शक्ति का अंबार छिपा है, तेरे दृढ़ संकल्पों में,,

जीवन का हर गीत लिखा है, तूने प्रेम के पन्नों में । 

संबल तेरा पाकर ही, निर्बल ने है लड़ना सीखा,,

देख अडिग विश्वास तेरा, पाषाणों ने अड़ना सीखा । 

धीर हो तुम! गंभीर हो तुम, भारत के सच्चे वीर हो तुम,,

सीमा पर घुसने वाले के, लेने प्राण अधीर हो तुम । 

घर-बार छोड़ हो अटल खड़े, करते शरहद की निगरानी,,

राष्ट्र को करते प्राण न्यौछावर, तुमसा नहीं कोई दानी । 

घर में बैठे मस्त हुए हम, बेफ़िक्री की रोटी पर,,

तुम हाथ राष्ट्रध्वज लिए खड़े, हिम की दुर्गम सी चोटी पर । 

तुम लोकतंत्र! तुम संविधान, तुम राष्ट्र के भाग्य विधाता हो,,

हम हैं स्वतंत्र! गौरवशाली, इस स्वत्व के तुम निर्माता हो । 

हम हैं कृतघ्न जो भूल गए, कोई जाग रहा सो सोते हम,,

जो तुम हो तो हम सब हैं, कहीं दास बने नहीं रोते हम । 

तुम अजर-अमर यश के स्वामी, हम तुच्छ क्षुद्र परिणाम हैं,,

हाथ जोड़ और शीश नवा, तुम्हें कोटि-कोटि प्रणाम है ॥ 

मौलिक व अप्रकाशित

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