रात आँखों में बिता दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
मैं आज बत्तियां जला दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
बैठे हो सर झुकाए, कुछ गुमशुदा से बन के,
आज घूँघट फिर उठा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
है कंपता बदन ये, आँखों में कुछ नमी है,
लाओ सर जरा दबा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
लगती हो खोई-खोई, किस सोच में पड़ी हो ?
ग़र फिक्र सब मिटा दूँ ! तो क्या बुरा मानोगे ?
ख़ामोशी क्यूँ है इतनी ? अरे गाते थे कभी हम,
मैं कुछ गीत…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on December 30, 2014 at 8:14pm — 9 Comments
मैं कफ़न में लिपटी इक तस्वीर मढ़ रहा हूँ,
हुकूमत के मुंह पर इक तमाचा जड़ रहा हूँ ।
भूख की कलम से, मैं पेट के पन्नों पर,,
बेबस गरीबी की इक कहानी गढ़ रहा हूँ ।
कानून क्यों है बेबस?यही खुद से बूझते मैं,
इंसाफ की डगर पर ऐड़ी रगड़ रहा हूँ ।
आ जाएगी अमन की दुल्हन मेरे वतन में,
इसी आस में उम्मीदों की घोड़ी चढ़ रहा हूँ ।
इंक़लाब के सफर में ज़ज़्बों की पोटली ले,
हिम्मत की तेज़ आती गाड़ी पकड़ रहा हूँ…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 30, 2014 at 12:53pm — 5 Comments
बहू के बदन पर देख,
Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 15, 2014 at 11:27am — 6 Comments
सूनी पड़ीं हैं कब से, रिश्तों की महफ़िलें ये,
आओ हम तुम मिल के, ये महफ़िलें सजा दें।
छेड़ी जो तान तुमने, मायूसी के शहर में,
हम भी हंसी की छोटी सी डुगडुगी बजा दें॥
बंद हैं दरवाजे, बहरों की बस्तियों में,
तो हम भी बन के गूंगे, इन्हें कोई सदा दें।
कुछ ग़म की है उधारी, कुछ क़र्ज़ बेबसी का,
दे बेक़सी के सिक्के, ये क़र्ज़ कर अदा दें॥
खाते लज़ीज़ व्यंजन, समझोगे क्या ग़रीबी,
होता नहीं निवाला, किसी भूखे को खिला दें।
सर पर हमारे बैठे, हैं…
Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 14, 2014 at 10:00am — 8 Comments
ज़िंदगी की आखिरी करामात हो जाए ,
चलो आज मौत से मुलाकात हो जाए ।
इस उम्मीद में निकला हूँ, मिल जाए कोई इंसां ,
बरसों चुप रहा, अब किसी से बात हो जाए ।
बरसात आ गई है, कुछ बीज मैं भी बो दूँ ,
शायद हरी-भरी फिर ये क़ायनात हो जाए ।
अक्सर ही पूछता हूँ, मैं ये सवाल खुद से ,
क्या करूँ कुछ ऐसा , कि वो खुशमिज़ाज़ हो जाये।
उम्र से ही पहले दिखने लगा हूँ बूढ़ा ,
चलो सफ़ेद बालों में, अब ख़िज़ाब हो जाए ।
पीठ…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 1:30pm — No Comments
एक ओर हैं ,
जनरल की बोगीं।
जिसमें बैठते हैं...
दमघोंटू माहौल में जीने की कला सीखे,
कुछ योगी,
और सरकारी बीमारियों से पीड़ित,
असंख्य रोगी।
दूसरी ओर हैं ,
उन्हीं बोगी से लगी हुईं कुछ ख़ास बोगीं।
जिनमें बैठते हैं...
भोगों से घिरे हुए,
भोग भोगते भोगी,,
और ग़रीबी से अछूते,
कई निरोगी।
कितना अनोखा,
यहाँ सुख-दुख का तालमेल है,,
जनता की सुविधा के लिए बनाई गई,
ये सरकार…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 13, 2014 at 10:00am — 6 Comments
नौ महीने तक सींच रक्त से, जिसको कोख में पाला,
आज उसी बेटे ने माँ को, अपने घर से निकाला।
जर्जर होती देह लिए, माँ ने बेटे को निहारा,
मानो उसके जीने का अब, छूट रहा हो सहारा॥
भूल गया गीली रातें, जब रोता था चिल्लाता था,
हाथ पैर निष्क्रिय थे तेरे, पड़े-पड़े झल्लाता था।
तब त्याग नींद! तेरी जगह लेट, सूखे में तुझे सुलाती थी,
अपने सीने से लिपटा, बाँहों में तुझे झुलाती थी॥
भूल गया वो सूखे दिन, जब गर्मी से घबराता था,
सन्नाटे की चादर ओढ़े,…
Added by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 12, 2014 at 2:33pm — 8 Comments
मातृभक्ति गुंजित स्वर तेरे, सिंहनाद सा करते हैं,,
तेरा साहस शौर्य देख, तेरे भय से शत्रु मरते हैं ।
वेग तेरी आशा का भारी, है आंधी तूफानों पर,,
तेज तेरे चेहरे का भारी, बिजली की मुस्कानों पर ।
शक्ति का अंबार छिपा है, तेरे दृढ़ संकल्पों में,,
जीवन का हर गीत लिखा है, तूने प्रेम के पन्नों में ।
संबल तेरा पाकर ही, निर्बल ने है लड़ना सीखा,,
देख अडिग विश्वास तेरा, पाषाणों ने अड़ना सीखा ।
धीर हो तुम! गंभीर हो…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 11, 2014 at 11:30am — No Comments
तुम मेरी मोहब्बत का इम्तिहान न लो,
बस यूँ ख़ामोश रह कर मेरी जान न लो ।
लोग कोसेंगे तुम्हें, तुमसे करेंगे दिल्लगी,
तुम अपने माथे पर, मेरी उजड़ी हुई पहचान न लो ।
बस्तियां खाली पड़ीं, कई लोग देंगे आसरा,
इक रात बसने के लिए, मेरे दिल का सूना मकान न लो ।
बेजुबां बेदम सा होकर, मैं पड़ा तेरी राह में,
मुँह फेर कर गुजरो मगर, मेरी आँखों की जुबान न लो ।
मैं बड़ा नाजुक हूँ, दिल पर बोझ भारी है बहुत ,
न गिरूँ…
ContinueAdded by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 10, 2014 at 11:30am — No Comments
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