For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

एक ओर हैं ,

जनरल की बोगीं। 

जिसमें बैठते हैं... 

दमघोंटू माहौल में जीने की कला सीखे,

कुछ योगी,

और सरकारी बीमारियों से पीड़ित,

असंख्य रोगी। 

दूसरी ओर हैं ,

उन्हीं बोगी से लगी हुईं कुछ ख़ास बोगीं।

जिनमें बैठते हैं... 

भोगों से घिरे हुए,

भोग भोगते भोगी,,

और ग़रीबी से अछूते,

कई निरोगी।

कितना अनोखा,

यहाँ सुख-दुख का तालमेल है,,

जनता की सुविधा के लिए बनाई गई,

ये सरकार की रेल है॥ 

मौलिक एवं अप्रकाशित 

Views: 435

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 15, 2014 at 11:39am

आप सभी के प्रोत्साहन एवं सराहना के लिए ह्रदय से आभार, आ. लड़ीवाला जी, आ. शकूर जी, आ. सोमेश कुमार जी, आ. गीत जी । 

Comment by लक्ष्मण रामानुज लडीवाला on October 15, 2014 at 10:36am

सरकारी रेल में भी वर्ग भेद की श्रेणियों पर अच्छा व्यंग आपकी अभिव्यक्ति से सामने आया है | बहुत खूब 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on October 15, 2014 at 8:29am

आदरणीय संदेश जी आपने बहुत खूबसूरती से अपनी बात प्रस्तुत की है बहुत बहुत बधाई आपको

Comment by somesh kumar on October 14, 2014 at 10:30pm

संदेश जी अगर इसमें स्लीपर का वर्णन भी कर दें तो रेल पूरी हो जाएगी | फिलहाल एक अच्छे प्रतीक को चुन अच्छी रचना प्रस्तुत रने के लिए बधाई |

Comment by संदेश नायक 'स्वर्ण' on October 14, 2014 at 12:50pm

विषय-वस्तु पर आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद, आ. जीतेन्द्र जी | 

Comment by जितेन्द्र पस्टारिया on October 13, 2014 at 11:21pm

सही विषय पर, एक सुंदर रचना लिखी आपने. बधाई आदरणीय सन्देश जी

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आ. भाई महेंद्र जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल से मंच का शुभारम्भ करने के लिए हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Jaihind Raipuri joined Admin's group
Thumbnail

आंचलिक साहित्य

यहाँ पर आंचलिक साहित्य की रचनाओं को लिखा जा सकता है |See More
2 hours ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हर सिम्त वो है फैला हुआ याद आ गया ज़ाहिद को मयकदे में ख़ुदा याद आ गया इस जगमगाती शह्र की हर शाम है…"
2 hours ago
Vikas replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"विकास जोशी 'वाहिद' तन्हाइयों में रंग-ए-हिना याद आ गया आना था याद क्या मुझे क्या याद आ…"
2 hours ago
Tasdiq Ahmed Khan replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"ग़ज़ल जो दे गया है मुझको दग़ा याद आ गयाशब होते ही वो जान ए अदा याद आ गया कैसे क़रार आए दिल ए…"
4 hours ago
Richa Yadav replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221 2121 1221 212 बर्बाद ज़िंदगी का मज़ा हमसे पूछिए दुश्मन से दोस्ती का मज़ा हमसे पूछिए १ पाते…"
4 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"आदरणीय महेंद्र जी, ग़ज़ल की बधाई स्वीकार कीजिए"
6 hours ago
Manjeet kaur replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"खुशबू सी उसकी लाई हवा याद आ गया, बन के वो शख़्स बाद-ए-सबा याद आ गया। वो शोख़ सी निगाहें औ'…"
6 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"हमको नगर में गाँव खुला याद आ गयामानो स्वयं का भूला पता याद आ गया।१।*तम से घिरे थे लोग दिवस ढल गया…"
8 hours ago
Chetan Prakash replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"221    2121    1221    212    किस को बताऊँ दोस्त  मैं…"
8 hours ago
Mahendra Kumar replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-184
"सुनते हैं उसको मेरा पता याद आ गया क्या फिर से कोई काम नया याद आ गया जो कुछ भी मेरे साथ हुआ याद ही…"
15 hours ago
Admin posted a discussion

"ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-127 (विषय मुक्त)

आदरणीय साथियो,सादर नमन।."ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" में आप सभी का हार्दिक स्वागत है।प्रस्तुत…See More
15 hours ago

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service