एक ओर हैं ,
जनरल की बोगीं।
जिसमें बैठते हैं...
दमघोंटू माहौल में जीने की कला सीखे,
कुछ योगी,
और सरकारी बीमारियों से पीड़ित,
असंख्य रोगी।
दूसरी ओर हैं ,
उन्हीं बोगी से लगी हुईं कुछ ख़ास बोगीं।
जिनमें बैठते हैं...
भोगों से घिरे हुए,
भोग भोगते भोगी,,
और ग़रीबी से अछूते,
कई निरोगी।
कितना अनोखा,
यहाँ सुख-दुख का तालमेल है,,
जनता की सुविधा के लिए बनाई गई,
ये सरकार की रेल है॥
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
आप सभी के प्रोत्साहन एवं सराहना के लिए ह्रदय से आभार, आ. लड़ीवाला जी, आ. शकूर जी, आ. सोमेश कुमार जी, आ. गीत जी ।
सरकारी रेल में भी वर्ग भेद की श्रेणियों पर अच्छा व्यंग आपकी अभिव्यक्ति से सामने आया है | बहुत खूब
आदरणीय संदेश जी आपने बहुत खूबसूरती से अपनी बात प्रस्तुत की है बहुत बहुत बधाई आपको
संदेश जी अगर इसमें स्लीपर का वर्णन भी कर दें तो रेल पूरी हो जाएगी | फिलहाल एक अच्छे प्रतीक को चुन अच्छी रचना प्रस्तुत रने के लिए बधाई |
विषय-वस्तु पर आपके प्रोत्साहन के लिए धन्यवाद, आ. जीतेन्द्र जी |
सही विषय पर, एक सुंदर रचना लिखी आपने. बधाई आदरणीय सन्देश जी
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