मैं कफ़न में लिपटी इक तस्वीर मढ़ रहा हूँ,
हुकूमत के मुंह पर इक तमाचा जड़ रहा हूँ ।
भूख की कलम से, मैं पेट के पन्नों पर,,
बेबस गरीबी की इक कहानी गढ़ रहा हूँ ।
कानून क्यों है बेबस?यही खुद से बूझते मैं,
इंसाफ की डगर पर ऐड़ी रगड़ रहा हूँ ।
आ जाएगी अमन की दुल्हन मेरे वतन में,
इसी आस में उम्मीदों की घोड़ी चढ़ रहा हूँ ।
इंक़लाब के सफर में ज़ज़्बों की पोटली ले,
हिम्मत की तेज़ आती गाड़ी पकड़ रहा हूँ ।
बारिश सुकून-ए-राहत, बेवक़्त हो बेमौसम,,
यही आसमाँ को कहने शिद्दत से बढ़ रहा हूँ ।
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
भूख की कलम से, मैं पेट के पन्नों पर,,
बेबस गरीबी की इक कहानी गढ़ रहा हूँ । -----बहुत मार्मिक और सार्थक भाव रचना के लिए बधाई
कानून क्यों है बेबस?यही खुद से बूझते मैं,
इंसाफ की डगर पर ऐड़ी रगड़ रहा हूँ ----------- बहुत सुन्दर , आदरनीय ग़ज़ल के लिये और इस शे र के लिये बधाइयाँ ।
wah wah rachna
मैं कफ़न में लिपटी इक तस्वीर मढ़ रहा हूँ,
हुकूमत के मुंह पर इक तमाचा जड़ रहा हूँ । … वर्तमान सन्दर्भ में सुंदर ग़ज़ल … हार्दिक बधाई
इंसाफ की डगर पर ऐड़ी रगड़ रहा हूँ । ...लाजवाब ! बहुत बढ़िया जी !
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