"अरे, बड़ा अजीब सा नाम लगा इस बंगले का, आस्तीन भी कोई नाम है !" शहर में नए आये व्यक्ति ने दोस्त से पूछा !
"जी, ये बंगला जिन्होंने बनवाया वो अब वृद्धाश्रम में रहते हैं !"
(मौलिक एवं अप्रकाशित)
Comment
बहुत बड़ी बात कह दी आपने बहुत ही कम शब्दों में ...बधाई
समसामयिक परिदृश्य पर गहरा कटाक्ष।
आदरणीय नोलेश जी आपने समाज के दुखद पहलू को छुआ है,हार्दिक बधाई आपको। सादर
बेहतरीन निलेश भाई....कम शब्दों में आपने सब लिख दिया है ....बहुत बहुत बधाई
बिना कथा वाली व्यंगात्मक टिप्पणियों को लघुकथा के नाम पर बार-बार दी जाने वाली शाबासी का ये चलन ओ बी ओ लघुकथाओं को गलत दिशा में ले जा रहा है, जानकारों को इस पर ध्यान देने की जरूरत है। ये वार्तालाप लघुकथा का हिस्सा तो हो सकते हैं और कुछेक बार लघुकथा भी लेकिन सिर्फ इस ढाँचे को ही लघुकथा कह देना कम से कम मेरे विचार से ठीक नहीं। क्षमा सहित।
आपकी यह लघुकथा बहुत ही प्रशंशनीय है. नमन आपकी लेखनी को. बधाई स्वीकारें आदरणीय नीलेश जी
राजेश कुमारी मैम , हार्दिक आभार !
मुझे आपके वचनो से और प्रेरणा मिलेगी !
गोपाल नारायण सर , आपके दिए गए प्रोत्साहन से अभिभूत हूँ ! आशीर्वाद बनाये रखियेगा !
योगराज सर,
आपका आशीर्वाद है !
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