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ग़ज़ल ,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,,गुमनाम पिथौरागढ़ी

दिल ये मेरा फ़क़ीर होना चाहे

घर फूँके बिन कबीर होना चाहे

 

तकसीम मज़हबों में करके हमको

तू बस्ती का वज़ीर होना चाहे

 

किस्मत में न सही तू ,पर तेरे ही

हाथों की वो लकीर होना चाहे

 

माँ की बराबरी करना छोडो तुम

गो ,खिचड़ी आज खीर होना चाहे

 

शोख नज़र दिलनशी अदा ये रूखसार

देख तुझे दिल शरीर होना चाहे

 

मौलिक व अप्रकाशित

गुमनाम पिथौरागढ़ी

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on November 11, 2014 at 9:22am

दिल ये मेरा फ़क़ीर होना चाहे

घर फूँके बिन कबीर होना चाहे -- बढ़िया मतला और गज़ल के लिये बधाई ।

Comment by gumnaam pithoragarhi on November 10, 2014 at 6:34pm
shukriya dosto....................

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on November 10, 2014 at 1:24pm

जनाब गुमनाम साहब, सबसे पहले तो आप एक बेहतरीन मतला के लिए ही दाद स्वीकार करें, बाकी अशआर भी अच्छे हुए हैं, बधाई इस प्रस्तुति पर।

Comment by Shyam Narain Verma on November 10, 2014 at 12:35pm

 सुन्दर अभिव्यक्ति पर हार्दिक बधाई।


प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on November 10, 2014 at 11:55am

अच्छी ग़ज़ल हुई है भाई गुमनाम पथौरागढ़ी जी।  मुझे लगता है कि मंदर्जा शेअर को अभी और वक़्त देने की ज़रूरत है :

//माँ की बराबरी करना छोडो तुम
गो ,खिचड़ी आज खीर होना चाहे //

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