For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

 

(("महिला-दिवस" पर महिलाओं को 'समर्पित'...))
----
गूंजती 'किलकारियां'... हंसती 'आँखें'...
नन्हें-नन्हें 'क़दम'... मुट्ठियों में भींचा "बचपन"...
छनकती 'आवाज़'... मासूम 'धड़कन'...
भोली 'मुस्कान', समेटे... हुआ औरत का 'जन्म' "आज"...!!

थामी 'कलम'... आँखों में 'सपनें'...
मुस्कान 'जोशीली'... क़दमों में "तेज़ी"...
इरादे 'मज़बूत'... हौसलों में 'उड़ान'...
नापनें ऊंचा 'आसमान'... निकली 'घर' से औरत "आज"...!!

ठिठके 'क़दम'... रोकते 'फ़र्ज़'...
ज़िम्मेदार 'कंधे'... माँ-बाप का "क़र्ज़"...
उदास 'मुस्कराहट'... बंद आँखों से झांकते 'सपनें'...
फिर भींची 'मुट्ठियाँ'... देती 'हिम्मत' औरत को "आज"...!!

महकती 'मेहंदी'... संवारती 'हल्दी'...
गहरी 'मुस्कान'... जुडती नयी "पहचान"...
छूटते 'सपनें'... अपनाते 'अपनें'...
सात जन्मों के 'क़दम'... थाम हाथ 'चली' औरत "आज"...!!

पौधे-सा बढ़ता 'जीवन'... बनता वृक्ष लगते 'फल'...
 सौम्य'मुस्कान'... मुट्ठियों में "जिम्मेदारियां"...
सधे 'क़दम'... सजाती आँखें अंश के 'स्वप्न'...
फूटता अंकुर 'वृक्ष' में फिर... जन्मी 'माँ' औरत में "आज"...!!

सरल-सहज 'मुस्कान'... खुली मुट्ठियाँ देती 'साहस'...
सजाती 'सपना' फिर... अंश के उज्जवल "भविष्य" का...
ठहरते क़दम, 'देखते'... बढ़ते क़दमों का 'विकास'...
छूटते रिश्ते, छूटता 'अंश'... माँ में तलाशती 'खुद' को औरत "आज"...!!

भावहीन 'मुस्कान'... मुट्ठियाँ ना 'बंधती', कांपते 'हाथ'...
जिम्मेदारियां झुके कन्धों से 'फ़िसल' जाती... आँखें करती कुछ "तलाश"...
कांपती, ठिठकती, सोचती 'आवाज़'... छूटे रिश्ते ढूंढें 'आस-पास'...
प्रारंभ से अंत सपनों का 'हास'... चली 'सात-चक्र' पूरे कर फिर औरत "आज"...!!

:::::::: जूली मुलानी ::::::::

Views: 586

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Julie on March 19, 2011 at 6:55pm
तिलक जी सबसे पहले तो आपको रंगों के त्यौहार होली की हार्दिक शुभकामनायें... रचना को पढने का शुक्रिया... आपसे पूरी तरह सहमत हूँ... चिंता से बेहतर चिंतन होता है... ये फर्क सिर्फ चंद मान्त्राओं का भले हो, मगर ये हमारे जीवन में हर मात्र के लिए दायित्वपूर्ण होता है... शुक्रिया आपकी चिंतनशील टिप्पड़ी का...!! :-)
Comment by Tilak Raj Kapoor on March 19, 2011 at 6:39pm
बहुत देरी से देखा है इस पोस्‍ट को। मुनष्‍य के जीवन का सबसे महत्‍वपूर्ण पल मेरे मत में वह होता है जब वह चिन्‍ता करने वाले प्राणी से चिन्‍तनशील प्राणी में परिवर्तित होता है, और फिर होते हैं वे पल जब उसका चिन्‍तन मुखर होकर सार्थक सृजन में संलग्‍न होता रहता है।
Comment by Julie on March 14, 2011 at 3:25pm
शुक्रिया रत्नेश जी... :)
Comment by Julie on March 14, 2011 at 3:25pm
अरुण जी आभार और शुक्रिया शुभकामनाओं के लिए... :)
Comment by Julie on March 14, 2011 at 3:24pm
वंदना जी... सुन्दर टिपण्णी के लिए आभार... :)
Comment by Julie on March 14, 2011 at 3:24pm
गणेश जी बहुत बहुत आभार... शुभकामनाओं के लिए तहे दिल से शुक्रिया... :)
Comment by Ratnesh Raman Pathak on March 10, 2011 at 3:37pm
बहुत खूब ......
Comment by Abhinav Arun on March 9, 2011 at 1:52pm
बहुत भावपूर्ण काव्य और महिला दिवस की शुभकामनाएं जुली जी |

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on March 8, 2011 at 9:53pm
वाह जुली वाह, बहुत ही खुबसूरत रचना आपने प्रस्तुत किया है, कुछ तो है आपके लेखन में जो ह्रदय को उद्वेलित कर जाता है, महिला दिवस की हार्दिक बधाइयों के साथ इस बेहतरीन पोस्ट पर धन्यवाद आपको |

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"ये ही खाना यूँ पहनना ऐसे चलना चाहिए औरतों पर इस तरह का सुर बदलना चाहिए इसे यूँ भी कह सकते हैं…"
40 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"ठोकरें खाकर नई अब राह चलना चाहिए आदमी को कर्म के सांचे में ढलना चाहिए। अनुभव से उद्भूत मार्गदर्शन…"
50 minutes ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"इस बार के तरही मिसरे के कारण कुछ ग़ज़ल प्रेमियों को आयोजन से दूर रहना पड़ा, इसका पूर्ण उत्तरदायित्व…"
1 hour ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"आ. रिचा जी, अभिवादन। अच्छी गजल हुई है। गिरह भी अच्छी लगी है। हार्दिक बधाई।"
1 hour ago
Jaihind Raipuri replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"ये ही खाना यूँ पहनना ऐसे चलना चाहिए औरतों पर इस तरह का सुर बदलना चाहिए सर झुकाकर ज़ुल्म के जो साथ…"
4 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"हर शेर खूबसूरत है। गिरह का शेर भी खूबसूरत हुआ, इसमें जो दोष है उसमें आपका कोई दोष नहीं, वह तो दिये…"
5 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"दोस्तों के वास्ते घर से निकलना चाहिए सिलसिला यूँ ही मुलाक़ातों का चलना चाहिए १ खूबसूरत शेर हुआ है…"
6 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"रात से मिलने को  दिन  तो यार ढलना चाहिए खुशनुमा हो चाँद को फिर से निकलना चाहिए।१। इसकी…"
6 hours ago
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"ग़ज़ल ठोकरें खाकर नई अब राह चलना चाहिएआदमी को कर्म के सांचे में ढलना चाहिए। —मेहनतकश की सदा…"
6 hours ago
Aazi Tamaam replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"२१२२ २१२२ २१२२ २१२ अब तुम्हारी भी रगों में खूँ उबलना चाहिए ज़ुल्म करने वालों का सीना दहलना…"
16 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"इसमें एडमिन की सहायता लगेगी आपको।"
18 hours ago
Tilak Raj Kapoor replied to Admin's discussion "ओ बी ओ लाइव तरही मुशायरा" अंक-181
"अभी तो तात्कालिक सरल हल यही है कि इसी ग़ज़ल के किसी भी अन्य शेर की द्वितीय पंक्ति को गिरह के शेर…"
yesterday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service