मुट्ठी में कब रेत भी, ठहरी मेरे यार।
चार पलों की जिंदगी, बाकी सब बेकार।।
जीवन की इस भीड़ में, सबके सब अनजान।
सिर्फ फलक ही जानता, तारों की पहचान।।
पाप पुण्य जो भी किया, सब भोगे इहलोक।
जाने कैसा कब कहाँ, होगा वो परलोक।।
आँखों ने जाहिर किया, कुछ ऐसा अफ़सोस।
आँखों पे कल धुंध थी, अब आँखों में ओंस।।
व्यर्थ मशालें ज्ञान की, प्रेम पिघलते दीप।
बिखरी है हर भावना, सिमटा दिल का सीप।।
सागर से मत मांगिए, बूँद बराबर प्यास।
टूट न जाए देखिये, दरिया का विश्वास।।
पलकों का है पालना, नैनो की है डोर।
रिश्तों के सुख दे गए, मुस्कानों के पोर।।
दरवाजे सब बंद है, कैसा यार मकान ।
दिल की खिड़की खोल दे, मन का रोशनदान।।
कोयलिया की कूक से, गुंजित है मधुमास।
तुम बिन अमराई मगर, लगती बहुत उदास।।
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(मौलिक व अप्रकाशित) - मिथिलेश वामनकर
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Comment
आदरणीय नरेन्द्र जी बहुत बहुत धन्यवाद
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