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ग़ज़ल (याद तेरी आये तो...)

याद तेरी आये तो ग़ज़ल कहता हूँ

रात दिन मुझको सताए तो ग़ज़ल कहता हूँ

होंठ स अपने पिलाए तो ग़ज़ल कहता हूँ

आँखों स आँख मिलाये तो ग़ज़ल कहता हूँ

चांदनी रात में तनहा मै कभी होता हूँ

याद में नींद न आये तो ग़ज़ल कहता हूँ

जब कोई होंठ पर मुस्कान सजा कर अपने

शर्म स आँख झुखाये तो ग़ज़ल कहता हूँ

पढ़ के अशार को "अलीम" के अगर कोई भी

मेरी हिम्मत को बढाए तो ग़ज़ल कहता हूँ

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Comment

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Comment by Admin on June 9, 2010 at 7:45pm
waah aleem jee waah, kyaa flow hai apki ghazal ki , Dhanyabaad,

प्रधान संपादक
Comment by योगराज प्रभाकर on June 9, 2010 at 1:08pm
Aleem bhai - itni aasaani se Ghazal kehne ka. yeh hunar hum ko bhi sikha deejiye na

मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 9, 2010 at 8:18am
पढ़ के अशार को "अलीम" के अगर कोई भी

मेरी हिम्मत को बढाए तो ग़ज़ल कहता हूँ ,

वाह अलीम भाई वाह, आपकी यही जो अदा है जिसका हम सब कायल है, इधर बीच मे आप कुछ दिन नहीं थे तो सभी लोग पूछा करते थे , आप इतनी आसानी से सब कुछ कह जाते है की पता ही नहीं चलता की कब आप की ग़ज़ल पढ़ चुके, अच्छी रचना धन्यबाद,
Comment by PREETAM TIWARY(PREET) on June 8, 2010 at 11:02pm
bahut hi badhiya rachna hai aleem bhai

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