ए-हुस्न-जाना..
दिल नही रहा अब तेरा दीवाना...
अब मुझको आया कुछ आराम है।
कि तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।
ए-हुस्न-जाना..
दिल अब तुझसे बेजार है..
हुस्नो-इश्क जबसे बना व्यापर है।
हूँ जिसका मै सिपहसलार बेकार वो दिल का रोजगार है।
ए-हुस्न-जाना..
दूंढ़ ले अब कोई नया ठिकाना...
मालूम मुझको तेरा मकाम है।
के तेरे सिवा जहाँ में और भी बहुत काम है।
ए-हुस्न-जाना..
छोड़ कफ़स-ए-शम्मा-परवाना...
दुनिया-ए-रू में आ देख क्या आराम है।
मै नहीं! तू नहीं! दर नहीं! हरम नहीं!
कोई है,सब उसी के नाम हैं।
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मौलिक व् अप्रकाशित (c) जान गोरखपुरी
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Comment
इस ,सुन्दर ,,भावपूर्ण रचना हेतु ,,आपको हार्दिक बधाई आ.बड़े भाई ( krishna mishra 'jaan'gorakhpuri जी ) |
प्रिय कृष्णा
बहुत सुन्दर . रचनामे गंभीरता है .
आ. कृष्णा मिश्रा जी. बहुत खूब. बधाई .
सुन्दर भाव पूर्ण रचना के लिये आपको बधाइयाँ । |
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