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तराना इक सुना देना

जनाजा जब उठे मेरा जरा तुम मुस्‍कुरा देना

दिये थे फूल जो तुमको जनाजे पे चढ़ा देना

गिराओ अश्‍क मत अपने बचा कर तुम इन्हें रख लो

चलो जब लाल जोड़े में इन्‍हें तब तुम बहा देना

वफा मेरीअगर तुमको कभी झूठी लगी हो तो

न आये चैन मर कर भी मुझे वो बद्दुआ देना

गलत खुद को समझना मत वफा मैं ही न कर पाया

न मुझ सा बेवफा कोई जमाने को बता देना

समझ लो प्यार में तुम से यही चाहत बची मेरी

कभी तुम कब्र पर आकर तराना इक सुना देना

अखंड गहमरी

मौलिक एवं अप्रकाशित

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on April 14, 2015 at 8:43am

आदरणीय अखंड भाई , बहुत सुन्दर गज़ल कही है , सभी अशआर सुन्दर हुये हैं , दिली बधाइयाँ स्वीकार करें ॥

न आये चैन मर कर भी मुझे ऐसी दुआ देना     ---- न आये चैन मर कर भी मुझे वो बद्दुआ देना

शायद के और अच्छा लगे , सोचियेगा ॥


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on April 14, 2015 at 7:44am
आदरणीय अखंड जी मुफ़ाईलुन x4 में आप बिलकुल अलग अंदाज़ की रवायती लहजे की गज़ले लेकर आते है। ये ग़ज़ल भी बहुत अच्छी हुई है। बह्र को खूब निभाया है। बधाई। शेर दर शेर दाद कुबूल फरमाएं।
Comment by Krish mishra 'jaan' gorakhpuri on April 13, 2015 at 8:47pm

बहुत ही भावपूर्ण!बहर तो मेरे समझ में नही आई! अगजल पर बधाई!

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