हरिद्वार से कुल गुरू का आगमन क्या हुआ ...अलका के तो इसबार होश ही फाख्ता हो गये ।
तीन लडकियों को जनने का दर्द कोख में फिर जाग उठा था ।
कुलगुरु के अलौकिक सानिध्य ही उसके पुत्र प्राप्ति का एकमात्र विकल्प सुन कर वह स्तब्ध थी ।
पति की झूकी हुई नजर देख कर अलका का अंतर्मन कराह उठा था ।
सती सावित्री सीता ... माँ दुर्गा ..माँ चंडिका रूप धर कर दुःसाध्य - कार्य करने को आज आतुर थी ।
धर्म के आड़ में समस्त अनाचार जग जाहिर हो गये । ...... खोखले रिश्ते अपने केंचुल आवरण से अब बाहर निकल रहे थे ।
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
कांता रॉय जी
विषय पुराना हो चुका है . पर तारीफ इस बात की कि आपका ट्रीटमेंट बिलकुल नया और प्रभावपूर्ण है . इसलिये कथा मार्मिक बन पड़ी है . सादर .
धार्मिक ढकोसलों पर ,सुंदर लघुकथा. बधाई आदरणीया काँता जी
सुंदर कथा।
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