आज भोपाल के चौक में रौनक जरा कम नजर आ रही थी । सारे दुकानदार सहमे से अतिक्रमण दस्ता के तरफ देख रहे थे । अफरा तफरी का माहौल देख कर वहां खरीदारी करने आये लोग परेशान हो इधर उधर हो रहे थे ।
"अरे भाई , इनको क्या परेशानी है ...? अगर दुकानदार समानों को सजाकर नही दिखाये तो ग्राहक को भी कैसे समझ में आये । " -- बेहद परेशान अजीज भाई कह उठे थे ।
"चौक के अंदर तक गाडियों का प्रवेश वर्जित कर दे , तो जरा बात भी बने । नाहक ही यह प्रसाशन , ग्राहक और दुकानदार दोनों को परेशान कर रहे है । "--- वहीं पास खडे़ मुकेश भाई भी अपने दुकान का शटर गिराते हुए कह रहे थे ।
" अम्मी , आपसे कहा था कि न्यू मार्केट चलो शाॅपिंग के लिये पर आपको तो चौक ही आना था ।"--शबाना बीबी झल्ला सी उठी थी अम्मी पर । क्या करें अम्मी भी ! एक उम्र जो गुजार चुकी है इन्ही गलियों से खरीदारी करते हुए । वो पहचानती है यहाँ की खासियत कि कहाँ कौन सी चीज़ उम्दा और अच्छी कारीगरी की मिलेगी । शाॅपिंग करना भी बडी जहीन सी एक कला ही होती है । भोपाल के चौक का रूतबा तो भोपाल के पुराने वाशिंदों के कारण ही है । जहाँ इब्राहिमपूरा में नामचीन साडियों , भोपाली कुर्ता और भोपाली पहनावे का एक पूरा बाजार ही मिलेगा तो वहीं पर दुसरी तरफ लखेरापूरा जैसा की नाम से ही प्रतीत होता है चुडियों की विशाल संसार यहाँ देखने को मिल जाती है ।
बात भोपाल की निकले और जडी के कामों की बात ना हो तो ऐसे में बात अधुरी ही मानी जायेगी । यहाँ की महीन कारीगरी विदेशों तक मशहूर है । जडी का सबसे बडा बाजार भी लखेरापूरा में ही मिलेगा । यहाँ तो जडी की महीन करीगरी सिर्फ साडियों और कुर्तों पर ही नही बल्कि जूती , पर्स , बैग , टोपी , छोटी -छोटी सी संदूकचीयों पर भी गजब की देखने को मिल जायेगी । सर्राफा बाजार तो सोने चाँदी की सबसे पुरानी और विश्वसनीय बाजार है भोपाल की । गहने का होलसेल मार्केट भी इन्ही सर्राफा की गलियों में ही है । इतवारा की इलेक्ट्रॉनिक्स बाजार भी ऐसी गजब की है कि यहाँ आपको इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रॉनिक हर प्रकार की चीज़ मिल जायेगी । सारे प्रोजेक्ट वर्क की प्रोजेक्ट किट यहीं मिलते है भोपाल में । इन्ही गलियों में स्थित भोपाल के बेहद मशहूर अफगान होटल और मदीना होटल की तो बात ही निराली है । यहाँ की बिरयानी , हलीम और शोरबे का मजा तो जिसने चखा वही जानता है । चाट पकौड़ी की गली में चटखारे के साथ लोगों की भीड़ ही लगी रहती है । इसी से यहाँ के स्वाद का अंदाजा लगाया जा सकता है । एक गली है यहाँ जो बेहद मशहूर है " चटोरी गली ".... नाम के अनुसार ही चटोरो और चटखारे स्वाद लेने वालों का जमावड़ा लगा रहता है ।
हर गली की यहाँ अपनी अलग ही दास्तान है ।
हर गली का मिजाज़ दुसरे गलियों से भिन्न है ।
चौक में एक बडा सा पीपल का पेड़ है । ना जाने कितनी उसकी उम्र होगी ? शायद कोई वनस्पति विज्ञान विशेषज्ञ ही बता सके क्योंकि इसका कोई ठोस प्रमाण नही है कि इसे कब लगाया गया ।चौक से ही ये सारी गलियाँ शुरू होती है । गाड़ियों की कतार ही आज के दौर में इन गलियों की सबसे बडी परेशानी है । नये लोगों का इन तंग गलियों में दम घुटता है । ऐसा अभी ट्रांसफर होकर आये एक नव दंपत्ति का कहना था । भोपाल की बेगमों के द्वारा बसाये गये बाजार की पारम्परिक मिजाज़ आज भी कायम मिलेंगे यहाँ । भोपाल तालों का शहर होने के साथ ही इन बेमिसाल गलियों का भी शहर है । मेरा मानना है कि अगर इन भोपाली गलियों को नहीं जिया तो क्या खाक भोपाल जिया ।
भोपाल के सरजमीं पर बसे भारत के नामचीन शायर बशीर बद्र साहब की एक गजल याद आती है कि
" मुस्कुराती हुई धनक है वही
उस बदन में चमक दमक है वही
फूल कुम्हला गये उजालों के
साँवली शाम में नमक है वही
अब भी चेहरा चराग़ लगता है
बुझ गया है मगर चमक है वही
कोई शीशा ज़रूर टूटा है
गुनगुनाती हुई खनक है वही
प्यार किस का मिला है मिट्टी में
इस चमेली तले महक है वही
कान्ता राॅय
मौलिक और अप्रकाशित
Comment
आ० कांता राय जी
आपने भोपाल की एक सांस्कृतिक और बेहतरीन झांकी दिखाई. ऊपर बशीर बद्र; जी का शेर . बहुत अच्छा .
माननीया कान्ता रॉय जी , भोपाली गलियों की सुन्दर सैर करवाई आपने ! हाँ , लखेरापुरा में ज़री का काम बखूबी किया जाता है , यहाँ के ज़री और मखमल से बने भोपाली बटुए सारे हिन्दोस्तान में मशहूर है ! भोपाली वाशिंदा अपने आप में अनोखा है ! और गाली .....तौबा-तौबा , गाली तो उसकी जुबां पे धरी है ! किन्तु इन अर्थहीन गालियों को आम भोपाली बड़े प्यार से आदान-प्रदान करता है ! मोहतरमा, भोपाल की इन नायाब खूबियों से पाठकों को क्यों महरूम रख रही है ! कुल मिला कर भोपाल तो बस भोपाल ही है ....सादर
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