चाहा है तुमने मुझे हर रंग में, हर रूप में ।
साथ दिया है तुमने हर छाँव में, हर धूप में ।
सोचती हूँ लेकिन कभी यूँ ही बैठकर , ..
जब जिंदगी की गोधूली बेला आएगी,
चेहरे पर झुर्रियां और बालो में सफ़ेदी छायेगी,
जब मेरे अधर न होंगे गुलाबों जैसे,
आँखें न होंगी गहरी झील जैसी ,
क्या तुम तब भी इन आँखों में खो जाओगे?
क्या अधरों पर प्रेम चिन्ह दे पाओगे ?
क्या कई दिनों से उलझी जुल्फों को सुलझा पाओगे ?
सोचती हूँ बस यूँ ही बैठकर ,
क्या उम्र भर मेरा साथ निभाओगे ? ????
माला झा "खुशबू"
(मौलिक एवम् अप्रकाशित)
Comment
बहुत सुंदर, भावपूर्ण रचना आदरणीया माला जी. बधाई
आदरणीया माला जी , सुन्दर भाव अभिव्यक्ति , हार्दिक बधाई आपको ॥
सुंदर अभिव्यक्ति...बधाई आपको
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