-: खींच अहं के मग से डग प्रभु :- (संसोधित)
खींच अहं के मग से डग प्रभु,
रख लें अपने चरणों में ||
है परम कांति अरु चरम शांति जो,
और किसी ना शरणों में |
सजा हुआ मद की बेड़ी मे,
जड़ा हुआ हूँ कहीं सिखा पर,
तोड़ एकांकी अहं का आसन,
मिला लें पद रज-कणों में |
खींच अहं के मग से डग प्रभु,
रख लें अपने चरणों में ||
यह राह नहीं है सीधा-सादा ;
मैं निकल पड़ा जिसपर |
रसहीन बचा बाकी जीवन,
अब गर्व करूँ किसपर |
अवसर पश्चाताप का ना तो,
फिर कहाँ मुक्ति मरणों में |
बस मुक्ति प्रभो के चरणों मे,
भक्ति भाव के वरणों में |
खींच अहं के मग से डग प्रभु,
रख लें अपने चरणों में ||
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-शरद सिंह "विनोद" -
मौलिक व अप्रकाशित
Comment
सुन्दर भक्तिमय गीत पर सार्थक प्रयास हुआ है आदरणीय शरद सिंह जी बधाई स्वीकार करें.
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