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मक्खन जैसा हाथ (लघुकथा )

मक्खन जैसा हाथ (लघुकथा )


नई -नवेली दुल्हन सी वो आज भी लगती थी । आँखों में उसके जैसे शहद भरा हो । पिता की गरीबी नें उसे उम्रदराज़ की पत्नी होने का अभिशाप दिया था ।


उसका रूप उसके ऊपर लगी समस्त बंदिशों का कारण बना । उम्रदराज और शक्की पति की पत्नी अपने जीवन में कई समझौते करने के कारण कुंठित मन जीती है ।


आज चूड़ी वाले ने फिर से आवाज लगाई तो उसका दिल धक्क से धडक गया । वो हमेशा की ही तरह पर्दे की ओट से धीरे से उसे पुकार बैठी , " ओ , चूड़ी वाले ! "


उसके मक्खन से हाथ को छुअन से होने वाले सिहरन का आभास देने वाले उस चूड़ी वाले का वो बडी़ शिद्दत से इंतजार किया करती थी ।


चुड़ीवाले ने हमेशा की तरह वहीं बाहर बैठ कर अपना साजों सामान पसार लिया । उसे मालूम था कि इस मक्खन जैसी हाथ वाली को सिर्फ हरे रंग की चूड़ियाँ ही अच्छी लगती है ।
पसारे हुए सभी चूडियों में धानी रंग की चूडियों पर पर्दे की ओट से मक्खन जैसी हाथ वाली की अंगुलियों ने इशारा किया ।

कुछ ही देर में मक्खन जैसे हाथ, चुड़ी वाले के खुरदरे से हाथ में देर तक बेचैनी और बेख्याली के पल को जीते रहे ।


कान्ता राॅय
भोपाल
मौलिक और अप्रकाशित

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Comment by vijay nikore on June 24, 2015 at 10:22am

सुश्री कांता जी, इस अच्छी सशक्त लघु कथा के लिए बधाई।

Comment by VIRENDER VEER MEHTA on June 23, 2015 at 4:58pm
सुन्दर कथा। स्त्री के अंदर की कुंठा को अप्रत्यक्ष रूप से प्रेम और भावनाओ के अधीन नजर आती दिखाने का कथा मे सुन्दर प्रयास।
आद: कान्ता जी, सादर बधाई स्वीकार करे।
Comment by kanta roy on June 23, 2015 at 4:31pm
आभार आपको कथा पसंदगी के हेतु आदरणीय मदन मोहन सक्सेना जी
Comment by kanta roy on June 23, 2015 at 4:30pm
आदरणीय विनय सर जी , आप सदा से एक अच्छे मार्गदर्शक रहे है हम सबके लिए । मै जरूर आपके दिये हुए मार्गदर्शन पर आगे से ध्यान रखूँगी । सादर नमन आपको
Comment by kanta roy on June 23, 2015 at 4:28pm
आदरणीया शशि जी , आपकी उपस्थिति कथा पर मेरा मनोबल बढ़ा जाती है हमेशा से । थैंक्स
Comment by kanta roy on June 23, 2015 at 4:26pm
आभार आदरणीय श्याम नारायण जी कथा पर प्रतिक्रिया कर मेरा हौसला बढाने के लिए ।
Comment by kanta roy on June 23, 2015 at 4:25pm
आभार आपको आदरणीय डा.विजय शंकर जी कथा का भाव जानकर मुझे हौसला देने के लिए
Comment by Madan Mohan saxena on June 23, 2015 at 4:17pm

आंतरिक बैचेनी और कुंठा दबाये गए प्रेम के अहसास

Comment by विनय कुमार on June 22, 2015 at 8:27pm

बहुत अच्छे विषय पर की गयी प्रस्तुति | ऐसी परिस्थिति में समझौते करने पड़ते हैं , शायद उचित ही है | लेकिन लघुकथा में इतनी बार // मक्खन जैसा हाथ // आया है कि ये बदमज़ा कर रहा है इसे | कृपया थोड़ा इस पर भी ध्यान दीजिये , बधाई इस रचना के लिए.

Comment by shashi bansal goyal on June 22, 2015 at 3:56pm
आद0 कांता जी स्त्री की आंतरिक बैचेनी और कुंठा दबाये गए प्रेम के अहसास को बखूबी चित्रित किया है । बधाई इस सुन्दर रचना पर

कृपया ध्यान दे...

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