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झरना फूटा
संगीत फ़ैल गया
हुआ बावरा

यात्रा अनंत
लक्ष्य का पता नहीं
चलाचल रे

नदी की धारा
रोके नही रूकती
हारीं चट्टानें

मानव मन
उड़ने को आतुर
पंख फैलाये

कोलाहल में
गहराया एकांत
भागी उदासी
.
यह मेरी अप्रकाशित और मौलिक रचना है
डॉ.बृजेश कुमार त्रिपाठी

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Comment

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Comment by amod shrivastav (bindouri) on July 12, 2015 at 11:30pm
हाइकू के वर्णों के बारे में कृपया जानकारी दे
Comment by Manisha Saxena on July 12, 2015 at 7:07pm

हाइकू अच्छे लगे| "चलाचल रे "शायद ज्यादा जमता और वर्ण भी पूरे हो जाते |


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 12, 2015 at 4:53am

आदरणीय , आपके हाइकू , बहुत अच्छे लगे , बधाई आपको ।

Comment by Omprakash Kshatriya on July 11, 2015 at 6:45pm

आदरणीय  जी

आप के हाइकू अच्छे है . बस इस में " चलाचल बावरे " में ७ वर्ण हो रहे है .

कृपया ध्यान दे...

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