For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

जीवन के जिस राग  का अनुभव में था ताप l  

बिन उसके जीवन वृथा, धन-वैभव या शाप ll 

 

भय वश मैं झिझका रहा प्रेम न फटका पास l 

गहरी नदिया पास थी अमिट और भी प्यास ll

 

मैं क्या जानूं उसे जो,   छिप कर करता वार  l

जीवन-रस अमृत सही,  छलक रहा हो सार  ll

 

कुछ तो फूटा है यहाँ, फैला है अनुराग l

बिन बदली भीगा बदन, ठंढी-ठंढी आग ll

 

यह सुगंध अनुराग की बढ़ा रही है चाह l                                                                                         

कैसे पहुचूँ आप तक दिखे न कोई राह ll  

 

बस इतना ही जानता, मैं हूँ पूर्ण अपूर्ण l 

बिन मेरे तेरी  मगर नहीं पूर्णता पूर्ण ll 

तेरे रस से पा रहा था अब तक कुछ मान l
टूटे मन के सब  भरम  छूटी झूंठी शान ll
डूब-डूब कर पंक में खूब हुआ हूँ म्लान l
योग क्षेम वाहक  मेरा कब रखोगे ध्यान ll

  

यह मेरी अप्रकाशित और मौलिक रचना है l

डॉ बृजेश कुमार त्रिपाठी

Views: 545

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Dr.Brijesh Kumar Tripathi on July 10, 2015 at 10:39pm

भाई गणेश जी

                   सादर वंदन

क्षमा चाहता हूँ ..हूँ तो आप के करीब ही लेकिन कुछ तो व्यस्तता रही नौकरी की और कुछ लिखने का उपयुक्त भाव ही नहीं बन पाया ...कई बार साईट पर बैठा लेकिन किसी अनपढ़ की तरह ...समझ ही नहीं पा रहा था क्या हो गया है ...कभी कभी आप लोगों  का साहित्य सृजन मन में प्रेरणा उत्पन्न करता था लेकिन अल्प काल के लिए....दिसम्बर १५  में सेवा निवृत्त हो रहा हूँ ..आशा है फिर नियम से सत्संग होगा  l


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on July 4, 2015 at 4:45pm

आदरणीय डॉ साहब, आप द्वारा प्रस्तुत दोहे अच्छे हैं, एक दो जगह कुछ कमी है जिसपर आदरणीय गोपाल नारायण जी बहुमूल्य सुझाव दिए हैं ...लेकिन इन सबसे पहले ...........आप हैं कहाँ आदरणीय ?

Comment by babita choubey shakti on May 31, 2015 at 12:11pm
आदरणीय जी अति सुंदर

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on May 28, 2015 at 10:19am

आदरणीय ब्रिजेश कुमार त्रिपाठीजी, आपको एक अरसे बाद इस मंच पर पुनः देखना अतीव प्रसन्नता का कारण हुआ है.
सहभागिता के लिए हार्दिक धन्यवाद. आदरणीय गोपाल नारायनजी के कहे का संज्ञान लें.
सादर

Comment by narendrasinh chauhan on May 26, 2015 at 12:03pm

बस इतना ही जानता, मैं हूँ पूर्ण अपूर्ण l 

बिन मेरे तेरी  मगर नहीं पूर्णता पूर्ण!! बहुत खूब सुन्दर रचना

Comment by Samar kabeer on May 25, 2015 at 3:41pm
जनाब डॉ.ब्रिजेश कुमार त्रिपाठी जी,आदाब,सुन्दर प्रस्तुति हेतु बधाई स्वीकार करें ।
Comment by मनोज अहसास on May 24, 2015 at 3:43pm
बहुत खूब सर
Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on May 24, 2015 at 11:38am

आ ० बृजेश जी

बहुत सुन्दर दोहे रचे आपने . बस एक जगह चूक हुयी ----------मैं  क्या जानूं  उसे  जो -----इस विषम चरण के अंत में  यगण  क्यों ? सगठन  4+4+३+2  तो सही है पर  सनियम यहाँ त्रिकल  १२ नहीं २१ ही मान्य  है i वर्तनी  में  ठंडी-ठंडी को ठंढी- ठंढी कर लें  तथा धिखें को दिखे ' सादर .

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted blog posts
8 hours ago
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted blog posts
8 hours ago
सतविन्द्र कुमार राणा posted a blog post

जमा है धुंध का बादल

  चला क्या आज दुनिया में बताने को वही आया जमा है धुंध का बादल हटाने को वही आयाजरा सोचो कभी झगड़े भला…See More
8 hours ago
आशीष यादव posted a blog post

जाने तुमको क्या क्या कहता

तेरी बात अगर छिड़ जातीजाने तुमको क्या क्या कहतासूरज चंदा तारे उपवनझील समंदर दरिया कहताकहता तेरे…See More
8 hours ago
Admin posted a discussion

"ओ बी ओ लाइव महा उत्सव" अंक-170

आदरणीय साहित्य प्रेमियो, जैसाकि आप सभी को ज्ञात ही है, महा-उत्सव आयोजन दरअसल रचनाकारों, विशेषकर…See More
20 hours ago
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on सुरेश कुमार 'कल्याण''s blog post एक बूँद
"आ. भाई सुरेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर रचना हुई है । हार्दिक बधाई।"
Tuesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . रोटी
"आ. भाई सुशील जी, सादर अभिवादन। सुंदर दोहे रचे हैं। हार्दिक बधाई।"
Saturday
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विविध
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी मनोहारी प्रशंसा का दिल से आभारी है सर "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा सप्तक. . . विरह
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय जी "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post कुंडलिया ....
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन के भावों को मान देने का दिल से आभार आदरणीय "
Jan 2
Sushil Sarna commented on Sushil Sarna's blog post दोहा पंचक. . . . कागज
"आदरणीय लक्ष्मण धामी जी सृजन आपकी स्नेहिल प्रशंसा का दिल से आभारी है सर ।  नव वर्ष की हार्दिक…"
Jan 2

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service