प्यार करना न अब तुम सिखाना मुझे
पास फिर से बुला मत जलाना मुझे
जिन्दगी बेवफाई करे भी तो क्या
मौत को रूठने से मनाना मुझे।
चार कन्धे चढ़े वो चले जा रहे।
कुछ नहीं पास उनके दिखाना मुझे।
वो नहीं है किया प्यार जिससे कभी
याद उसकी न यारो दिलाना मुझे
मैं मनाता नही कोई उत्सव मगर
दीप दिल से जले तो बताना मुझे
हर तरफ जो अँधेरा जमीं पे अभी
जान दे भी उसे है मिटाना मुझे
रात भर अश्क गम में बहे क्यों सनम
दोस्त को अब है दुश्मन बनाना मुझे
मौलिक एवं अप्रकाशित अखंड गहमरी
Comment
बहुत बढ़िया गहमरी जी . बधाई .
दीप दिल से जले तो बताना मुझे
हर तरफ जो अँधेरा जमीं पे अभी , बहुत सुन्दर !! आदरणीय अखंड भाई , बढिया ग़ज़ल हुई है , बधाइयाँ ॥
विस्तृत समीक्षा मे लिए आपको नमन आदणीय मिथिलेस वामनकर जी आपके बताये मार्ग पर चलने का पूरा प्रयास करेगें। नमन स्वीकार करें
आदरणीय अखंड जी सरल सहज लफ्जों में प्रेम की बेहतरीन और शानदार ग़ज़ल हुई है शेर दर शेर दाद हाज़िर है-
प्यार करना न अब तुम सिखाना मुझे
पास फिर से बुला मत जलाना मुझे........... सुन्दर मतला
जिन्दगी बेवफाई करे भी तो क्या
मौत को रूठने से मनाना मुझे।........... बहुत ही कमाल का शेर
चार कन्धे चढ़े वो चले जा रहे
कुछ नहीं पास उनके दिखाना मुझे।............ बात खुल कर सामने नहीं आ रही है
वो नहीं है किया प्यार जिससे कभी
याद उसकी न यारो दिलाना मुझे।.......... बहुत बढ़िया
मैं मनाता नही कोई उत्सव मगर
दीप दिल से जले तो बताना मुझे।............वाह वाह बेहतरीन
हर तरफ जो अँधेरा जमीं पे अभी
जान दे भी उसे है मिटाना मुझे।.............. बहुत ही बढ़िया शेर .... शानदार ....
रात भर अश्क गम में बहे क्यों सनम
दोस्त को अब है दुश्मन बनाना मुझे।..... दुश्मन क्यों बनाना है बात समझ नहीं आई
निवेदन है बह्र या वज्न अवश्य लिख दिया कीजिये मंच की परिपाटी भी है और पाठको को भी ग़ज़ल का पूरा लुत्फ़ मिल जाता है
वज्न- 212--212--212--212
सादर
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