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क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए

"ओ भी क्या दिन थे..............
नानी की गोद में,
नाना के कंधे पे,
बेतहास मस्तियों में झूम रहे थे,
ना पढाई की सोच,
ना लाईफ के फंडे थे
ना कल की चिंता थी
ना भविष्य के सपने थे,
आज है कल की फिकर,
अधूरे है सपने,
मुड़कर जो देखा,
दूर बहुत है अपने,
मंजिल को ढूंढते ,
आज हम कहाँ खो गए,
क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए.....................,

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Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 9, 2011 at 1:09pm

 

गुरुजी प्रणाम............

"आप ने बच्चो में अपने आप को देखा बहुत-बहुत धन्यवाद..............

Comment by Rash Bihari Ravi on April 9, 2011 at 12:42pm
वो अपना रूठना ,
रूठ कर सब पाना ,
वही सब अब ,
अपने बच्चे कर रहे हैं ,
फिर हम क्यूँ न कहें ,
क्यूँ आज हम इतने बड़े हो गए.....
Comment by Sanjay Rajendraprasad Yadav on April 9, 2011 at 12:08pm
नमस्कार गणेश जी,(बागी)

ह्रदय की बहुत गहराईओ से आप को बहुत-बहुत धन्यवाद


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on April 8, 2011 at 8:50pm
वोह संजय भाई याद मत दिलाईये उस गोल्डेन वक्त को , तबियत फिर उसी जिन्दगी को जीने की होने लगती है | बहुत ही अच्छी रचना ......दिल जब बच्चा था जी , धन्यवाद इस रचना पर |

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