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इतनी सारी रोटियाँ (लघुकथा ) कान्ता राॅय

"कितने बडे परिवार में व्याह दिया तुमने माँ , एक बार भी नहीं सोचा कि कैसे निभाऊँगी मै ? "

"नहीं बिट्टो ऐसा नहीं कहते ,भरा - पूरा घर है तुम्हारा । ऐसे परिवार क़िस्मत- वालियों को मिलते है । "

"खाक क़िस्मत -वालियाँ , तुम नहीं जानती कि मुझे , इतनीss सारी रोटियां अकेले सेंकनी पडती है ।"

"घर के लोगों की रोटियां नहीं गिनते बिट्टो , नजर लग जाती है ।" माँ हल्की चपत लगाते हुए कह उठी थी उस दिन ।

माँ का लाड़ से मुस्कुरा कर रह जाना, आज उसे बहुत याद आ रहा था ।

पति की अचानक हुए रोड एक्सीडेंट में उनका मरणासन्न अवस्था और  बडे़ परिवार का एकजुटता से बच्चे समेत उसको भी संभालना , आज रसोई पकाते हुए रोटियां गिनती में बहुत कम  नजर आ  रही थी ।

"मौलिक व अप्रकाशित" 

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Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 1:31pm
बिलकुल सही कह रहे है आप आदरणीय शेख शहज़ाद जी , संयुक्त परिवार में पिता और दादा स्वरूप एक मुखिया ,जो समस्त बाहरी जिम्मेदारियों का संवहन बडी ही संयम और धैर्य से करते थे । घर के अंदर माँ और दादी का वर्चस्व तले अधेडावस्था तक बच्चे ही बने होने के एहसास से परिपूर्ण , बेहद ही गरिमामय संस्कृति और संस्कार है ये जो विलुप्तप्राय से हो चले है । हमें लौटने की जरूरत है फिर से हमारी जड़ों के ओर । आभार आपको
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 1:19pm
ऐसी रचनाओं से ही पुनर्जागरण हो सकेगा।
Comment by Sheikh Shahzad Usmani on September 22, 2015 at 1:14pm
ठीक है हमने हर क्षेत्र में उन्नति कर ली है । हम वैश्वीकरण की दौड़ में पीछे कतई नहीं हैं,...... किन्तु......किन्तु.... ओह... संयुक्त परिवार की, भारतीय संस्कृति के अद्भुत लक्षणों/ गुणों की अवनति नहीं होनी चाहिए थी
Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 10:16am
" अखंडित परिवार " बहुत सुंदर शब्द हुआ है ये । सच है ये कि परिवार की एक जुटता बडे़ - बडे तूफान की गति मंद कर जाती है । इसका संरक्षण , इसका महत्व जन - जन में होने की बहुत जरूरत है । कथा पर आपकी उपस्थिति मेरे लिए अत्यंत हर्ष का विषय हुआ है आदरणीय गिरीराज भंडारी जी । आभार
Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 10:12am
कथा पर प्रतिक्रिया देकर मेरा हौसला बढाने के लिए तहे दिल से आभार आदरणीय धर्मेन्द्र कुमार जी ।
Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 10:10am
कथा पसंदगी के लिए आभार आपको आदरणीय नीरज कुमार जी ।
Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 10:09am
आपके द्वारा कथा पर इतनी हौसलावर्धक प्रतिक्रिया पाकर मै अभिभूत हुई हूँ । आभार आपको तहेदिल से आदरणीया राजेश कुमारी जी ।
Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 10:06am
कथा पसंदगी के लिए तहेदिल से आभार आपको आदरणीय डा. विजय शंकर जी ।
Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 10:04am
मार्गदर्शनयुक्त प्रतिक्रिया आपकी हमेशा मेरी कलम को सचेत कर जाती है जो मेरे लिये सदा हितकारी ही साबित होता आया है । सदा आपके मार्गदर्शन तले हमारा सार्थक विकास हो ऐसी आशा करती हूँ । नमन आपको हृदयतल से आदरणीय सौरभ सर जी ।
Comment by kanta roy on September 22, 2015 at 9:46am
गाँव में अभी भी हम साँझा परिवार ही होते है जब हम गाँव जाते है । हमारे ससुर जी दो भाई , और हम तीन बहूऐं ,हम सबके बच्चे , मालूम ही नहीं पडता है कौन किसके बच्चे है और कौन बहू की सास कौन है । दुख - सुख साथ में जीना । संयुक्त परिवार होने के फायदे ही अधिक है ,नुकसान कुछ भी नहीं । कथा पर आपकी मौजूदगी सदा सकारात्मक ऊर्जा दे जाती है । आभार आपको चंद्रेश जी ।

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