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बसंत की शोभा बनती  

कोयल मीठी बोलती

डाली डाली पर उड़ती

अमृत रस है घोलती

राही से कुछ कहती

नव उमंग से भरती

तन की पीड़ा हरती

मन में खुशियाँ भरती

कड़वाहट को दूर करती

सबका दिल है जीतती

प्यारी सबको लगती

कौवे पर नजर रखती

सदा मेहनत से बचती

घोसले का इंतेजार करती

मौका देख खुद अंडे देती

कौवे के अंडे बाहर करती

उसके संग साजिस करती

बच्चों को नहीं पालती

कोयल कौवे संग रहती

कभी उपकार न करती

कौवे के संग छल करती

उससे सदा नफरत करती

उसका सब कुछ लूटती   

सभा में उपहास करती

मूरख कह उसे बुलाती

लाड़ली खुद बन जाती

उड़ती फिरती आनंद करती

एक प्रश्न यहाँ पर उठता

कोयल से कौवे का रिश्ता  

क्या है समाज में दिखता

कौन तुम्हारा हक लूटता

जागो अपना भविष्य बचाओ।   

कोयल मीठी बोलती ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित 

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