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ज़िंदगी और मौत के बीच फासला कितना,

ज़िंदगी और मौत के बीच फासला कितना,

पता नहीं किसी को कब आ जाए फरिस्ता ।

मौत के सौदागर उगाते हैं घृणा की फसल

समाज में खड़ी करते हैं नफरत की दीवार ।

बुझाते सभी के सामने जलता हुआ चिराग

सोचो सच और झूठ में अंतर है कितना ॥

एक बंदा भरी में कुछ आंशू बहा के कहता

विश्वास करो मुझपर हूँ भरी सभा में कहता ।

आज हमारे समाज से मिट रही साहिस्णुंता

आज घोल रहे विष देश में कुछ हमारे नेता ॥

मैं तुम्हारे दुख की घड़ी में बेहद गम जुदा हूँ

कोई इंसानियत का कत्ल सारे आम करता ।

जो घृणित कार्य में आंतरिक सहयोग करता

दोषी को पीछे के रास्ते से बाहर निकालता ।

सामने आकर लोगों से मन की बात करता

विश्वास करो मुझपर तुम्हारे दुख में मैं दुखी हूँ ॥

आज विद्यार्थी की मौत सबको हैरान करती

हैएकलब्ध की घटना की याद ताजा करती ।

अंगूठा क्या यह जीवन लीला समाप्त करता

झलकती समाज में द्रोणाचार्य की मानसिकता ।

गर्व से हम प्रजातन्त्र विकास की बातें करता

पता नहीं किसी को कब समाप्त हो जाए रास्ता ॥

मौलिक एवं अप्रकाशित

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Comment by लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' on February 3, 2016 at 12:16am

सुन्दर प्रयास बधाई l

Comment by Hari Prakash Dubey on February 2, 2016 at 1:41am

सुन्दर प्रयास ,सुन्दर भाव ,हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर आ. Ram Ashery जी !सादर 

 

Comment by Ram Ashery on January 30, 2016 at 7:34pm

मेरे विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए आपको सहृदय आभार 

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