ज़िंदगी और मौत के बीच फासला कितना,
पता नहीं किसी को कब आ जाए फरिस्ता ।
मौत के सौदागर उगाते हैं घृणा की फसल
समाज में खड़ी करते हैं नफरत की दीवार ।
बुझाते सभी के सामने जलता हुआ चिराग
सोचो सच और झूठ में अंतर है कितना ॥
एक बंदा भरी में कुछ आंशू बहा के कहता
विश्वास करो मुझपर हूँ भरी सभा में कहता ।
आज हमारे समाज से मिट रही साहिस्णुंता
आज घोल रहे विष देश में कुछ हमारे नेता ॥
मैं तुम्हारे दुख की घड़ी में बेहद गम जुदा हूँ
कोई इंसानियत का कत्ल सारे आम करता ।
जो घृणित कार्य में आंतरिक सहयोग करता
दोषी को पीछे के रास्ते से बाहर निकालता ।
सामने आकर लोगों से मन की बात करता
विश्वास करो मुझपर तुम्हारे दुख में मैं दुखी हूँ ॥
आज विद्यार्थी की मौत सबको हैरान करती
हैएकलब्ध की घटना की याद ताजा करती ।
अंगूठा क्या यह जीवन लीला समाप्त करता
झलकती समाज में द्रोणाचार्य की मानसिकता ।
गर्व से हम प्रजातन्त्र विकास की बातें करता
पता नहीं किसी को कब समाप्त हो जाए रास्ता ॥
मौलिक एवं अप्रकाशित
Comment
सुन्दर प्रयास बधाई l
सुन्दर प्रयास ,सुन्दर भाव ,हार्दिक बधाई आपको इस रचना पर आ. Ram Ashery जी !सादर
मेरे विचारों को लोगों तक पहुंचाने के लिए आपको सहृदय आभार
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