(१) शक्ति छ्न्द=== इस छ्न्द मे १, ६, ११ , एवम् १६ लघु होता है /
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मापनी १२२ १२२ १२२ १२
ज़मीं पे सितारे थिरकने लगे /
मनो भाव बन कर मचलने लगे /
लिखे राज मुक्तक मगन मन सुधा/
सुमन गीत बनकर महकने लगे //
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(२)मापनी= १२२२ १२२२ १२२२ १२२२
लगाओ पेड़ धरती पर करो खुशहाल अब धरती /
बिछाओ फूल चुन चुन कर यही घर घर खुशी भरती/
घटाएँ भी बहर बन के करें शृंगार धरती का /
हरित सावन दिखे भादों सुबह अरु शाम सज धरती/
..
मौलिक व अप्रकाशित"
राजकिशोर मिश्र 'राज' प्रतापगढ़ी
Comment
आदरणीय सौरभ पांडेय जी प्रणाम आपकी आत्मीय स्नेहिल हौसला अफजाई के लिए आभार
बहुत ही अच्छा प्रयास हुआ है, आदरणीय. हार्दिक शुभकामनाएँ
मेरा एक निवेदन है, आधुनिक हिन्दी (खड़ी भाषा) की रचनाओं में ’और’ को दो मात्रिक करने के क्रम में ’अरु’ न किया करें. ऐसी व्यवस्था अवधी भाषा-भाषी रचनाकार करते हैं. क्योंकि अवधी भाषा में और का स्थानापन्न ’अरु’ है. मैं नहीं समझता कोई अवधी क्षेत्र से परे का हिन्दी भाषी ’और’ के लिए ’अरु’ का प्रयोग करता है. इसके लिए औ’ एक बहुत ही सुलभ विकल्प है. इसका प्रयोग हिन्दी ही नहीं उर्दू भाषिक भी बहुतायत में करते हैं
सादर
माँ तेरा एहसान है मुझ पे बड़ा /
चाँद गौरव गा रहा नभ पे खड़ा /
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