For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

बस दृष्टा बने रहो

तोड़ कर आरोपित बन्धन 
जब जब
बंधना चाहा जी चाहे बंधन में
पूरी तरह असफलता केवल मिली
न कल न आज
सम्भव ही नहीं स्वंय का स्वंय से मुक्त होना
कभी दलील ने
कभी दहलीज़ ने
कभी सीखी सिखाई
नसों में दौड़ती तहज़ीब ने
रोक लिए कदम
बस केवल हो पाया  इंतज़ार
तारों के जागने का
धूप के भागने का
कि  एक मैं  रहूँ एक मेरा संसार
मेरा आकाश मेरी  बंद आँखे
एक पूरी खुली दुनिया
जागती दुनिया से बहुत सुंदर
बहुत खुली अछूती बहुत
बहुत उन्मुक्त ,मुक्त
मेरी स्वंय की पूरी की पूरी दुनिया
 
लेकिन होता क्या उसमें भी
उसमें भी मंत्र- मुग्ध,मृग मरीचिका
बस छले जाते रहो ,चले जाते रहो
बस दृष्टा बने रहो  
 
नहीं  अस्तित्व
अस्मिता का प्रश्न ही नहीं
एक भी मेरा काम
हाथ भर भी हिला पाने का
जुबान  भर भी चला पाने का
भाग  जाने अथवा थक जाने का
कभी प्यास कभी पसीना
पहाड़ चढ़ना उतरना जीना
पर नहीं कुछ भी अपना वश
की किसी छाँह को ढूढ़ पाऊँ
दो पल को सिमट जाऊँ
नहीं कुछ भी अपना वश
बस दृष्टा बने रहो
 
सामने चौसर बिछी
मालूम भी रहे मोहरे
पर एक भी हिला पाने का प्रावधान नहीं
एक स्वर भी बोल पाने का प्रावधान नहीं
बस दृष्टा बने रहो
 
दौड़ते दौड़ते हांफ जाने पर
पहाड़  से फिसल जाने पर
निराधार हो गिरते चले जाने पर
भयाक्रांत हो जाने पर
खुल जाना  स्वप्न का अपनी ही चीख से
 
 
क्या यही हैं मेरी निजी दुनियाएं
जहाँ सिर्फ और सिर्फ मैं हूँ और मेरा कोई वश नहीं
मूक हूँ बस दृष्टा  मात्र
बंधन  से मुक्त होना कहीं नहीं संभव
किसी भी दुनिया में
बस दृष्टा बने रहो
उस पर ये सोचना की
सारथी हैं हम
अपने ही जीवन के
निज धुरी से प्रवंचित
हथियार उठाना वर्जित
बस दृष्टा बने रहो
कृष्ण कैसे रह पाये होंगे निरपेक्ष
बाँट कर निज को
एक तरफ स्वंय
दूसरी तरफ अपनी ही समूची सेना अपने विरुद्ध
बस दृष्टा बने रहो
असम्भव
तोड़ कर बन्धन, बंधन से मुक्त होना सचमुच कहीं नहीं संभव।
"मौलिक व अप्रकाशित"

Views: 429

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by amita tiwari on March 4, 2016 at 9:10pm

 Rahila ji

तहे दिल से बहुत  शुक्रिया…"

Comment by amita tiwari on February 23, 2016 at 8:29pm

आपकी सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार. सादर

Comment by नादिर ख़ान on February 23, 2016 at 6:35pm

आदरणीय अनिता जी समाज के बंधनों की वजह से, महिलाओं के अंतर्मन की छटपटाहट को आपकी रचना ने बखूबी उकेरा।
आपको बहुत बधाई इस उत्तम रचना कर्म के लिए ...

Comment by Rahila on February 23, 2016 at 11:44am
बहुत अच्छी रचना आदरणीया अमीता जी !कहीं ना कहीं इस रचना से खुद को जुड़ा पाया । बहुत बधाई ।सादर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on अजय गुप्ता 'अजेय's blog post ग़ज़ल (अलग-अलग अब छत्ते हैं)
"आ. भाई अजय जी, सादर अभिवादन। परिवर्तन के बाद गजल निखर गयी है हार्दिक बधाई।"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - ताने बाने में उलझा है जल्दी पगला जाएगा
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। बेहतरीन गजल हुई है। सार्थक टिप्पणियों से भी बहुत कुछ जानने सीखने को…"
yesterday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on Nilesh Shevgaonkar's blog post ग़ज़ल नूर की - मुक़ाबिल ज़ुल्म के लश्कर खड़े हैं
"आ. भाई नीलेश जी, सादर अभिवादन। सुंदर गजल हुई है। हार्दिक बधाई।"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on बृजेश कुमार 'ब्रज''s blog post गीत-आह बुरा हो कृष्ण तुम्हारा
"आ. भाई बृजेश जी, सादर अभिवादन। गीत का प्रयास अच्छा हुआ है। पर भाई रवि जी की बातों से सहमत हूँ।…"
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' posted a blog post

घाव भले भर पीर न कोई मरने दे - लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"

अच्छा लगता है गम को तन्हाई मेंमिलना आकर तू हमको तन्हाई में।१।*दीप तले क्यों बैठ गया साथी आकर क्या…See More
Wednesday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' commented on लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर''s blog post कहते हो बात रोज ही आँखें तरेर कर-लक्ष्मण धामी "मुसाफिर"
"आ. भाई गिरिराज जी, सादर अभिवादन। गजल पर उपस्थिति और स्नेह के लिए आभार। यह रदीफ कई महीनो से दिमाग…"
Tuesday
PHOOL SINGH posted a blog post

यथार्थवाद और जीवन

यथार्थवाद और जीवनवास्तविक होना स्वाभाविक और प्रशंसनीय है, परंतु जरूरत से अधिक वास्तविकता अक्सर…See More
Tuesday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"शुक्रिया आदरणीय। कसावट हमेशा आवश्यक नहीं। अनावश्यक अथवा दोहराए गए शब्द या भाव या वाक्य या वाक्यांश…"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"हार्दिक धन्यवाद आदरणीया प्रतिभा पाण्डेय जी।"
Monday
pratibha pande replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"परिवार के विघटन  उसके कारणों और परिणामों पर आपकी कलम अच्छी चली है आदरणीया रक्षित सिंह जी…"
Monday
लक्ष्मण धामी 'मुसाफिर' replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आ. प्रतिभा बहन, सादर अभिवादन।सुंदर और समसामयिक लघुकथा हुई है। हार्दिक बधाई।"
Monday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-123 (जय/पराजय)
"आदाब। प्रदत्त विषय को एक दिलचस्प आयाम देते हुए इस उम्दा कथानक और रचना हेतु हार्दिक बधाई आदरणीया…"
Monday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service