अदभुत अकथनीय वातावरण
आज भगवान स्वयं घर पधारे हैं ,
चारों –ओर खुशियाँ ही खुशियाँ लाये है
भगवान् या देवी जो भी हों
घर को खुशियों से भर दिया है
आज अम्बर भी ,देव वियोग में आसूं बहा रहा है
हवायें भी व्याकुल हो
प्रभु को ढूढने चली आ रही हैं
इससे अनभिज्ञ ,अंजान हैं
हमारे छोटे भगवान् जी
घरवालों के प्रान जी
पर क्या इनकी पूजा होगी ?
क्या इनकी किलकारियां ,नटखट अदाएं यूँ ही रहेंगी ?
ऐसा प्रश्न क्यूँ आया
आना चाहिए हम ऐसे ही समाज में तो जी रहे हैं,
जो जल हमारी प्यास बुझाता है
कभी-कभी बाढ़ का खूंखार रूप भी लाता है
सब अपने जन्मदाता जैसे नहीं होते,
कुछ नज़रें शिकार भी ढूढती हैं
जब इंसान के अन्दर का भगवान् मरता है
फिर किसे बच्चों में भगवान् दिखता है
क्या भविष्य है छोटे भगवान् का ?
सरल है ,सीधा है
दरिंदों के चंगुल से कब तक बचेंगे
आज खेल रहे हैं जिसकी गोदी में
उसके अन्दर शैतान पनप रहा है
कुछ समझ भी तो नही सकते
छोटे भगवान् जो ठहरे ,
माँ-बाप को कुछ बयाँ भी नहीं कर सकते
फिर होगा यही,
जहाँ प्यार है ,चंचलता है ,मासूमियत है
वहां अपनों का शिकार बनकर
हँसना ,खेलना भूलकर
सहमे हुए ,दुबककर,पीर सागर के संग
नन्ही आँखों में भयावह मंजर लिए
बैठे होंगे किसी कोने में
छोटे भगवान्
इसी डर में कि कोई अपना,
अपना शिकार न बना ले |
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मौलिक व् अप्रकाशित
Comment
आ. सुरेश कुमार 'कल्याण' जी ,रचना पर अपनी प्रतिक्रिया देने हेतु आपका आभार ,सादर |
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