जिन्दगी का सफर खूब है,
मैं हूँ तनहा , मगर खूब है.
जिन्दगी कट रही शान से ,
ये सुहाना सफ़र खूब है .
क्या कहूँ मैं शबे-वस्ल को,
वो जगा रात भर खूब है.
प्यार की इंतिहा हो गई,
बेकरारी उधर खूब है .
हर दिशा में चमकता रहा ,
ये गणित का सिफर खूब है.
खार के साथ हैं फूल भी, ,
कंटकों की डगर खूब है
मानता हूँ मैं "आभा"तुझे,
वाह! तेरी नज़र खूब है.
....आभा
(मौलिक और अप्रकाशित)
Comment
वाह बेहतरीन ग़ज़ल .. बहुत बधाई..सादर |
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