कैसे कहूँ कि तू मुझे चिट्ठी ही भेज दे,
तू है जहाँ वहां की तू मिट्टी ही भेज दे.
याद आ रही है मुझको तेरी आज इस तरह,
तू प्यार से लिख चिट्ठियां कोरी ही भेज दे.
करता तलाश नौकरी कैसे बता मिले,
चिठ्ठी नहीं तो तू मेरी अर्जी ही भेज दे.
बेज़ार हो चुकी बहुत तनहाइयों से मैं,
बेशक तू कोई याद पुरानी ही भेज दे.
इस जिंदगी की राह में कांटे बिछाये क्यूँ,
तू ज़िंदगी के नाम की रुबाई ही भेज दे.
मेहँदी रचाई हाथ में तेरे ही नाम की,
जब रच गयी है मेहँदी तो डोली ही भेज दे
.
“आभा” को याद आ गई भूली सी दास्तान,
तू उसको चेहरे की हंसी थोड़ी सी भेज दे.
..आभा
प्रस्तुत ग़ज़ल अप्रकाशित एवं मौलिक है ....आभा
Comment
नमस्कार दोस्तों ,मुझे ऐब-ए-तनाफुर दोष के बारे में नहीं मालूम है मैं आपनी जानकारी के लिए इस दोष के बारे में जानना चाहती हूँ शुक्रिया .....
आदरणीय डॉ आशुतोष मिश्रा जी आपने मेरी इस ग़ज़ल पर अपनी प्रतिक्रिया दी इस के लिए मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ शुक्रिया .....:)
आदरणीय सुशील सरना जी नमस्कार , मैं आपकी प्रतिक्रिया से सहमत हूँ आगामी ग़ज़लों में इस बात का ध्यान रखा जायेगा बहुत बहुत शुक्रिया आपका .....मेरी ग़ज़ल में या फिर अन्य किसी रचना में कोई भी ख़ामी नज़र आये तो आप निःसंकोच बता सकते हैं ..
आदरणीय मनोज कुमार अहसास जी नमस्कार , मैं आपकी प्रतिक्रिया से सहमत हूँ आगामी ग़ज़लों में इस बात का ध्यान रखा जायेगा बहुत बहुत शुक्रिया आपका .....
आदरणीयाा आभा जी गजल के प्रयास के लिये आपको बधाई मनोज की बात से हम भी सहमत है और गजल से पहले उसका अरकान या बह्र लिख दिया करे समझने मे आसानी हाेेती है और यह मंच का अनुशासन भी है सादर
अादरणीय अाभा जी सुंदर और भावपूर्ण प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई। इस ग़ज़ल की बहर भी लिख देते तो अच्छा होता।
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