२२१ २१२१ १२२१ २१२
चंदा मेरी तलाश में निकला है रात को!
शायद वो मेरी चाह में भटका है रात को !!
होती है उम्र उतनी ही जितनी कि है लिखी!
जलता दिया भी देखिये बुझता है रात को!!
आँखों के डोरे कर रहे सब कुछ बयां यहाँ!
लगता है तेरा ख्वाब भी उलझा है रात को!!
दुनिया की भीड़ में मेरा दिन तो गुज़र गया!
हर शख्स ही लगा हमें तनहा है रात को!!
बदनामियों के डर से ही हम तो सिहर गए!
हर ख्वाब जैसे अपना …
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on July 15, 2019 at 10:00pm — 3 Comments
२१२२ ११२२ २२
खुशनुमा ख्वाब सजा कर देखो,
रात में चाँद बुला कर देखो.
नींद आँखों में कहाँ है यारो,
सारे ग़म अपने भुला कर देखो.
नफरतें कर रहे हो क्यूँ मुझ से,
हाथ में हाथ मिला कर देखो.
तिश्नगी लव पे क्यूँ तेरे छाई,
जाम हाथों से पिला कर देखो.
आज गर्दिश में है तेरी ‘आभा’,
उस के ग़म दूर भगा कर देखो
....आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by Abha saxena Doonwi on November 7, 2016 at 10:32pm — 4 Comments
दिए कुछ आस के ......
आँखों से झांक रहे
सपने विश्वास के
देहरी पर जल रहे
दिए कुछ आस के
नेह के भरोसे ही
कुछ रिश्ते जोड़े हैं
तुमने न जाने क्यूँ
अनुबंध सारे तोड़े हैं
मौन की पीडाएं ही
मुझको तो छलती हैं
पास तुम आते हो
दूरी तब ढलतीं हैं
सम्बन्ध ले आये हैं
रिश्ते कुछ पास के
देहरी पर जल रहे
दिए कुछ आस के |
नश्तर से चुभते हैं
धूप के सुनहरे…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on November 1, 2016 at 4:00pm — 2 Comments
धनतेरस के पर्व पर, कर लें कार्य महान|
निर्धन को बर्तन करें, दान आप श्री मान||
दीवाली लाये सदा, खुशियाँ अपरम्पार|
खील बताशे कह रहे, हम आये हैं द्वार||
लक्ष्मी और गणेश की, पूजा करिए साथ|
सब पर ही किरपा करें, मेरे भोले नाथ||
होई करवा चौथ का, लगे अनोखा मेल|
पर्वों की अब देखिये छूटी जाती रेल||
इस दीवाली लग रही, फीकी सी सब ओर|
सीमा पर प्रहरी तकें, एक सुहानी भोर||
डाल दिये झूले सभी मन…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on October 28, 2016 at 9:20am — 6 Comments
अम्मा आयी है......
नाती नातिन से मिलने को अम्मा आयी है|
बड़े दिनों के बाद मेरे घर अम्मा आयी है||
बच्चों से छुप छुप कर सुरती पान चबाती है|
पान का डिब्बा और तम्बाखू अम्मा लायी है||
मेरे घर का पानी भी मुश्किल से पीती है|
एक कनस्तर लड्डू मट्ठी अम्मा लायी है||
दिखे जमाई घर के अन्दर झट छुप जाती है|
शर्मो हया का संग पिटारा अम्मा लायी है||
इस दुनिया की है या फिर उस दुनिया की है|
भर कर देसी…
Added by Abha saxena Doonwi on October 24, 2016 at 10:49am — 13 Comments
कल माँ का श्राद्ध है
पन्द्रहवाँ श्राद्ध
कल उनकी बहु उठेगी
पौ फटते ही पूरा घर करेगी
गंगाजल के पानी से साफ
सुबह सुबह ठंडे गंगाजल मिले पानी से
नहायेगी भी, पहनेगी उनकी दी हुयी साड़ी
जो उसे पसन्द भी नहीं थी...
फिर पूरा घर बुहारेगी
बनायेगी तरह तरह के पकवान
जो भी माँ को पसन्द थे
पूजा में नतमस्तक हो बैठेगी मन लगा कर
अपने हाथों से खिलायेगी
गाय को पूरी खीर
कौओं को हांक लगा कर बुलायेगी छत पर
फिर खिलायेगी छोटे छोटे कौर…
Added by Abha saxena Doonwi on September 20, 2016 at 3:00pm — 13 Comments
अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,
भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।
पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।
जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।
अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।
ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।
याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,
हालात से है जूझता हर तन और मन है ।…
Added by Abha saxena Doonwi on September 17, 2016 at 10:00am — 9 Comments
दरवाजों पर ताले रखना
चाबी जरा संभाले रखना।
ठंडी होगयी चाय सुबह की
पानी और उबाले रखना।
संसद में घेरेंगे तुझको
तू भी प्रश्न उछाले रखना।
गाँवों का सावन है फीका
नीम पर झूले डाले रखना।
चिडियों की चीं चीं खेतों में
कुछ गौरैयाँ पाले रखना|
दूर ना होना अपनों से तू
रिश्ते सभी संभाले रखना।
...आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 14, 2016 at 1:00pm — 6 Comments
पहाड़ी के बीच
**************************
ऊँची नीची पहाड़ी पगडंडियों में
बल खाती घुमावदार सड़कों के बीच
दिखती है एक चाय की दुकान
यह दुकान होती है
छोटे मोटे मकानों में
किसी भी पगडंडी पर
किसी खोखे जैसी दुकान
उस में चाय भी बनती है
आलू प्याज के बनते हैं पकौड़े भी
यहाँ कभी कभी टहलते हुये
होते हैं लोग इकट्ठा
करतें हैं अपने ऊँची चोटी पर बसे गाँव की बातें
इसी बीच इन्हीं दुकानों पर
वे कर लेते…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 13, 2016 at 11:00pm — 7 Comments
चाँद की शक्ल में आ जाओ सहर होने तक,
ईद हो जाये मेरी आठ पहर होने तक.
तुमको आवाज़ भी देती तो बताओ…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 13, 2016 at 5:00pm — 6 Comments
सवेरे सवेरे.....
आज आटा गूंधते समय
अचानक उठ आये
छोटी उंगली के दर्द ने
याद दिलाया है मुझे
सुबह गुस्से में जो कांच का
गिलास जमीन पर फेंका था तुमने
उसी काँच के गिलास को
उठाते वक्त चुभा था
काँच के गिलास का वह टुकड़ा,मेरी उँगली में
लाल खून भी अब तो
झलकने लगा है उंगली में
सोच रही हूँ
अब कैसे गूंधूंगी आटा
फिर बायें हाथ से ही
समेटने लगी हूँ
उस आधे गुंधे हुये आटे को
तुम्हें क्या मालूम
हर हाल मे ही
सहना…
Added by Abha saxena Doonwi on September 12, 2016 at 3:10pm — 5 Comments
बह्र ~ 1222-1222-122
मुफ़ाईलुन मुफ़ाईलुन फ़ऊलुन
मतला ...
नहीं ये आँख में आंसू ख़ुशी के
ये आंसू हैं किसी मुफलिस दुखी के
ग़ज़ल कैसे लिखूं मैं लिख न पाती,
नहीं है लफ्ज़ मिलते शायरी के.
नहीं आदत है हमको तीरगी की ,
जियें कैसे बता बिन रौशनी के.
बहुत ग़मगीन हैं दिल की फिज़ायें,
किसे किस्से सुनाएँ बेबसी के.
कहे हमने नहीं अल्फाज दिल के,
गुजर ही जायेंगे दिन जिन्दगी के.
अगर “आभा…
ContinueAdded by Abha saxena Doonwi on September 11, 2016 at 8:30am — 2 Comments
रंग बिरंगे हाइकु
*************
1.
ग्रीष्म की रुत
सांकल सी खटकी
पीली लू आयी
२.
लिखती रही
रंगीन सा हाइकू
रात भर मैं
३.
सफ़ेद छोने
बर्फ के सिरहाने
फाये रुई के
...आभा
Added by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 12:32pm — 3 Comments
चले बराती मेघ के ,गरज तरज के साथ |
ओलों ने नर्तन किये ले हाथों में हाथ |1|
आँखों में जब आ गए अश्रु की तरह मेघ |
रोके से भी न रुके तीव्र है इनका वेग |2|
सूर्य किरण हैं कर रहीं नदिया में किल्लोल |
चमक दमक से हो रहा जीवन भी अनमोल |3|
आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Added by Abha saxena Doonwi on September 10, 2016 at 8:00am — 5 Comments
नव गीत
.
छा रहे बादल गगन में
जा रहे या आ रहे हैं?
टिपटिपाती चपल वर्षा
हो रही धरती सुगन्धित
आज आजाने को घर में
क्या पता है कौन बाधित?
देर से पंछी गगन में
पंख-ध्वज फहरा रहे हैं
श्याम अलकें गिर रही है
बैठ कांधे खिल रही है
पवन बैरन बाबरी सी
झूम गाती चल रही है
आँख में कजरा चमकता
मेघ नभ गहरा रहे हैं
सारिका की टेर सुन तरु
गुनगुनाने लग पड़े हैं
धूप की फिर से चिरौरी
भास्कर करने लगे…
Added by Abha saxena Doonwi on August 29, 2016 at 5:01pm — 5 Comments
मैं जब स्कूल से आयी तो देखा बिशम्भर नाथ जी यानि कि मेरे चाचा जी मेरे सगे चाचा जी ड्राइंग रूम में बैठे माँ के साथ बतिया रहे थे। वही पुरानी खानदान की बातें, पुराने बुआ दादी के किस्से । मैंने देखा उन्होंने कनखियों से एक नज़र मुझ पर भी डाली है।
‘‘बेटा इधर आओ देखो चाचा जी आये हैं’’ मैं माँ की बात को अनसुना करके अपने कमरे में चली गयी। आज मुझे ‘चाचाजी’ शब्द से ही घृणा हो रही थी। जिनकी गोदी में मैं बचपन से खेलती आयी हूं जिनके लिये मैं हमेशा उनकी छोटी सी गुड़िया रही वही इस गुड़िया के शरीर से खेलना…
Added by Abha saxena Doonwi on August 22, 2016 at 10:00pm — 5 Comments
लघु कथा
राखी वाला नोट
जैसे ही चौराहे पर लाल रंग का सिगनल हुआ वह अपनी बहन लाली को गोदी में ले कर दौड़ पड़ा भीख माँगने के लिये। बन्द कारों के शीशों के पार उसकी आवाज पँहुच नहीं पा रही थी।
तभी एक कार का शीशा खुला और एक महिला ने पचास रूपये का नोट उसे पकड़ा दिया। लाली को उसने नीचे बिठाया और वह उस पचास रूपये के नोट को निहारने लगा। ’’ भैया वह देखो कितनी सुन्दर राखियाँ सामने दुकान पर टगीं हैं एक राखी मुझे भी चाहिये’’
भाई उठा और राखी लेने के लिये दौड़ पड़ा। अचानक चूूूू.......... की…
Added by Abha saxena Doonwi on August 18, 2016 at 2:00pm — 3 Comments
नव गीत
बहुत दिनों के बाद
मैंने यह डायरी खोली है।
आज नहीं है तू ओ! सजनी
मैं हूं सागर के बिन तरणी
पंछी बन कैदी हूं घर में
खड़ी हुई ज्यों रेल सफर में
बहुत दिनों के बाद
तेरी यह डायरी खोली है।
पढ़ लेता मैं डायरी पहले
कह देता जो चाहे कहले
घुट घुट के न रोने देता
कहा हुआ सब तेरा करता
बहुत दिनों के बाद
मर्म यह डायरी खोली है|
पता चला है आज ही मुझको
कितनी बेचैनी थी तुझको
तभी तो तूने कदम…
Added by Abha saxena Doonwi on July 27, 2016 at 7:30am — 3 Comments
नव गीत
सूर्य ने
छाया को ठगा |
काँपता थर.थर अँधेरा
कोहरे का है बसेरा
जागता अल्हड़ सवेरा
किरनों ने
दिया है दग़ा |
रोशनी का दीपकों से
दीपकों का बातियों से
बातियों का ज्योतियोँ से
नेह नाता
क्यों नहीं पगा |
छाँव झीनी काँपती सी
बाँह धूपिज थामती सी
ठाँव कोई ताकती सी
अब कौन है
किसका सगा
......आभा
प्रस्तुत नव गीत अप्रकाशित एवं मौलिक है .....आभा
Added by Abha saxena Doonwi on July 25, 2016 at 6:00pm — 9 Comments
बहुत कर्ज़ है पापा मुझ पर
कैसे अदा करूं|
बचपन में मैं जब छोटी थी
कैरम की जैसे गोटी थी
घूमा करती छत के ऊपर
कभी न टिकती एक जगह पर
उन सपनों को उन लम्हों को
कैसे जुदा करूँ ।
सुबह सुबह उठ कर तुम पापा
सरदी में ना करते कांपा
मुझे उठा कर मुंह धुलवाते
शिशु कवितायें भी तुम सिखलाते
कहाँ छिप गये तुम तो जा कर
कैसे निदा करूं|
मेरे विवाह के थे वह फेरे
आँखों पर रूमाल के डेरे
थकी कमर थी, थकी थी…
Added by Abha saxena Doonwi on July 22, 2016 at 10:00pm — 7 Comments
आवश्यक सूचना:-
1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे
2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |
3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |
4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)
5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |
© 2024 Created by Admin. Powered by
महत्वपूर्ण लिंक्स :- ग़ज़ल की कक्षा ग़ज़ल की बातें ग़ज़ल से सम्बंधित शब्द और उनके अर्थ रदीफ़ काफ़िया बहर परिचय और मात्रा गणना बहर के भेद व तकतीअ
ओपन बुक्स ऑनलाइन डाट कॉम साहित्यकारों व पाठकों का एक साझा मंच है, इस मंच पर प्रकाशित सभी लेख, रचनाएँ और विचार उनकी निजी सम्पत्ति हैं जिससे सहमत होना ओबीओ प्रबन्धन के लिये आवश्यक नहीं है | लेखक या प्रबन्धन की अनुमति के बिना ओबीओ पर प्रकाशित सामग्रियों का किसी भी रूप में प्रयोग करना वर्जित है |