For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

चाँद की शक्ल में आ जाओ सहर होने तक,

ईद  हो  जाये  मेरी  आठ  पहर  होने    तक.

 

तुमको   आवाज़   भी  देती तो बताओ कैसे,

राह   मैं   तकती  रही पूरा सर होने तक.

जाने   कब   होगी सहर रात अभी बाक़ी है,

मर ही जाएँ न कहीं आज  सहर होने तक.

 

अश्क़   पलकों   की    मुंडेरों पे सजाऊँ कैसे,

सूख   जायेंगे  सभी तुझको ख़बर होने तक.

आप   आओ  तो सही आपकी रहमत होगी, 
आस   बाकी  है   बची मेरी गुज़र होने तक.

 

माँ   ने    जब दी है दुआ बद्दुआ कैसे होगी ,
हम भी बैठे  हैं दुआओं का असर होने तक.

....आभा 

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 526

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by Ashok Kumar Raktale on September 15, 2016 at 11:15pm

तुमको   आवाज़   भी  देती तो बताओ कैसे,

राह   मैं   तकती  रही पूरा सर होने तक........वाह ! खूब.

उत्तम गजल हुई है आदरणीया आभा सक्सेना जी. बहुत बधाई स्वीकारें. सादर.


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by rajesh kumari on September 15, 2016 at 10:54pm

बढ़िया  ग़ज़ल कही  है आभा जी हार्दिक बधाई |

माँ   ने    जब दी है दुआ बद्दुआ कैसे होगी ,
हम भी बैठे  हैं दुआओं का असर होने तक.---बहुत खूब 

 

Comment by ram shiromani pathak on September 14, 2016 at 8:46pm
बहुत सुंदर आदरणीया।बधाई
इसे और भी बेहतर कर सकती है आप।सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 14, 2016 at 8:14pm
आदरणीया आभा सक्सेना जी सुन्दर भावपूर्ण रचना के लिए हार्दिक बधाई प्रेषित है । सादर ।
Comment by Abha saxena Doonwi on September 14, 2016 at 8:07am

आदरणीय समर कबीर साहब जी नमस्कार ,

मैं प्रतिदिन कुछ अच्छा लिखने कि कोशिश करती हूँ ......और उसमें आपसे इस्लाह की  अपेक्षा भी करती हूँ ..ग़ज़ल और नवगीत के क्षेत्र में मैं अभी नयी हूँ  इसलिए गलतियाँ होना स्वाभाविक है ...आप इसी तरह स्नेह भाव बनाये रखेंगे ऐसी उम्मीद मैं आपसे करती हूँ ..आपने मेरी रचना को पढ़ा , सराहा मुझे अच्छा लगा बहुत बहुत आभार आपका .....

Comment by Samar kabeer on September 13, 2016 at 10:30pm
मोहतरमा आभा सक्सेना साहिबा आदाब,कमाल की ग़ज़ल हुई है,मुग्ध कर दिया इस ग़ज़ल ने वाह वाह वाह बहुत खूबसूरत और मुरस्सा क्या कहने,जितनी तारीफ़ की जाये कम होगी,अल्फ़ाज़ की बंदिश चुस्त,हर शैर पूरी रवानी से बह रहा है,शैर दर शैर दाद के साथ ढेरों मुबारकबाद क़ुबूल फरमाएं ।

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Blogs

Latest Activity

Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"शुक्रिया आदरणीय।"
Monday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, पोस्ट पर आने एवं अपने विचारों से मार्ग दर्शन के लिए हार्दिक आभार।"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार। पति-पत्नी संबंधों में यकायक तनाव आने और कोर्ट-कचहरी तक जाकर‌ वापस सकारात्मक…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब। सोशल मीडियाई मित्रता के चलन के एक पहलू को उजागर करती सांकेतिक तंजदार रचना हेतु हार्दिक बधाई…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"सादर नमस्कार।‌ रचना पटल पर अपना अमूल्य समय देकर रचना के संदेश पर समीक्षात्मक टिप्पणी और…"
Sunday
Sheikh Shahzad Usmani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदाब।‌ रचना पटल पर समय देकर रचना के मर्म पर समीक्षात्मक टिप्पणी और प्रोत्साहन हेतु हार्दिक…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय शेख शहज़ाद उस्मानी जी, आपकी लघु कथा हम भारतीयों की विदेश में रहने वालों के प्रति जो…"
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मनन कुमार जी, आपने इतनी संक्षेप में बात को प्रसतुत कर सारी कहानी बता दी। इसे कहते हे बात…"
Sunday
AMAN SINHA and रौशन जसवाल विक्षिप्‍त are now friends
Sunday
Dayaram Methani replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय मिथलेश वामनकर जी, प्रेत्साहन के लिए बहुत बहुत धन्यवाद।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"आदरणीय Dayaram Methani जी, लघुकथा का बहुत बढ़िया प्रयास हुआ है। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion "ओबीओ लाइव लघुकथा गोष्ठी" अंक-128 (विषय मुक्त)
"क्या बात है! ये लघुकथा तो सीधी सादी लगती है, लेकिन अंदर का 'चटाक' इतना जोरदार है कि कान…"
Sunday

© 2025   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service