For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

गीत ........अब हृदय में वेदनाओं का सृजन है |

अब हृदय में वेदना ही का सृजन है,
भीड़ में कहीं खो गया यह मेरा मन है ।


पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।


जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।


अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।


ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।


याद रहता है कहाँ, कोई किसी को,
हालात से है जूझता हर तन और मन है ।


ये कहाँ की आदतें सी पड़ गयीं हैं,
हर ठहाके में शामिल रहता रुदन है।


छोड़ कर जाने को मेरा मन ना चाहे,
ज़िन्दगी का नाम ही आवागमन है।


आभा

अप्रकाशित एवं मौलिक 

Views: 519

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on October 6, 2016 at 10:15pm

पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।


जब बहारों ने किया स्वागत हमारा,
प्रीत-पथ के पांव में कंटक चुभन है।


अब उगेंगे पेड़ जहरीली जमीं पर,
आदमी का विषधरों जैसा चलन है।

बहुत खूब आदरणीया आभा जी |

Comment by डॉ गोपाल नारायन श्रीवास्तव on September 21, 2016 at 6:47pm

आ० आभा जी , मैं आ० रामबली जी के कथन से सहमत हूँ . सादर .


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on September 21, 2016 at 6:45pm

आदरणीया आभा जी , रचना के लिये हार्दिक बधाइयाँ प्रेषित हैं , स्वीकार करें । आदरणीय रचना मुझे लगता है गीत शिल्प की शर्तें पालन नही कर पा रहीं है । आदरणीया प्राची जी की बातों का ख्याल करें ।


सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Dr.Prachi Singh on September 21, 2016 at 4:13pm

बहुत खूबसूरत भाव प्रवण रचना आ० आभा जी 

सभी द्विपदियाँ खूबसूरत भाव समाहित करती हैं , लेकिन कहन को और कसने की और शिल्प को भी और साधने की आवश्यता तो है....

पतझड़ों सी हर खुशी लुटने लगी है,
सच, बहारों ने उजाड़ा फिर चमन है।.......बहारें चमन को कैसे उजाड़ देंगी???? आँधियाँ तूफ़ान होना चाहिए न 

ये हवा तूफान की रफ्तार सी है,
इसमें हर मासूम के अरमां दफन हैं।............यहाँ 'हैं' बहुवचन प्रयुक्त हो गया जबकि द्विपदियों का अंत 'है' से हुआ है 

*वैसे हर मासूम एक वचन हो गया 

इसमें हर मासूम का अरमां दफ़न है....सही होगा 

बाकी भी छोटी छोटी कुछ और चीज़ें हैं, जिन्हें साध कर इस प्रस्तुति में चार चाँद लग जाएंगे . 

शिल्प ग़ज़ल के ज्यादा समीप है..आप इसे ग़ज़ल का रूप आसानी से दे सकती हैं.

सस्नेह 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by शिज्जु "शकूर" on September 21, 2016 at 2:54pm

आ. आभा जी अच्छी रचना है बधाई आपको

Comment by रामबली गुप्ता on September 21, 2016 at 8:14am
सुंदर सृजन है आद० आभा जी किन्तु मुझे यह गीत के स्थान पर ग़ज़ल के जैसा लग रहा है। दूसरी बात कई स्थानों पर प्रवाह में अटकाव है। यदि आप इसे 2122 2122 2122 के वह्र में लिखें तो बेहतर हो।सादर
Comment by सुरेश कुमार 'कल्याण' on September 20, 2016 at 11:40am
अब उगेंगे पेड जहरीली जमीं पर
आदमी का विषधरों जैसा चलन है ।
वाह्ह्ह आदरणीयाआभा जी बहुत ही सुन्दर। बधाई स्वीकार करें । सादर ।
Comment by Samar kabeer on September 18, 2016 at 2:44pm
मोहतरमा आभा जी आदाब,बहुत अच्छा लगा आपका गीत,इस प्रस्तुति पर बधाई स्वीकार करें ।
Comment by डॉ पवन मिश्र on September 18, 2016 at 10:15am

वाह आद. आभा जी। बहुत सुंदर

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
19 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service