कल माँ का श्राद्ध है
पन्द्रहवाँ श्राद्ध
कल उनकी बहु उठेगी
पौ फटते ही पूरा घर करेगी
गंगाजल के पानी से साफ
सुबह सुबह ठंडे गंगाजल मिले पानी से
नहायेगी भी, पहनेगी उनकी दी हुयी साड़ी
जो उसे पसन्द भी नहीं थी...
फिर पूरा घर बुहारेगी
बनायेगी तरह तरह के पकवान
जो भी माँ को पसन्द थे
पूजा में नतमस्तक हो बैठेगी मन लगा कर
अपने हाथों से खिलायेगी
गाय को पूरी खीर
कौओं को हांक लगा कर बुलायेगी छत पर
फिर खिलायेगी छोटे छोटे कौर
फिर जायेगी किसी गली के लावारिस कुत्ते को ढ़ूढ़ने
उसको भी खिलायेगी देसी घी में बनी पूरी सब्जी
सात पंडितों को बुला कर खिलायेगी
भरपूर भोजन.........
फिर पंडितों के चरण छू कर लेगी आर्शीवाद
आशंका रहती है उसके मन में कुछ
अनिष्ट के होने की.....
जब दक्षिणा देने का समय आयेगा
तब दिलवायेगी उन्हीं के बेटे से
दान पंडितों को
बच्चों को बुला कर दिलवायेगी शुभाशीष
माँ नहीं है तो इतने आडम्बर....
जब वह जीवित थी तो माँ
तरसती थी पानी को भी
दवाई और इलाज को भी
कैसा श्राद्ध है यह
आज पंडित जी की थाली में हैं
अनेकों व्यंजन.....
पर माँ मेरी माँ, भूखी और अतृप्त ही विदा हुयी
इस दुनिया से.....
आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
भावना रहित ढकोसलों को बयाँ करती अच्छी प्रस्तुति ...हार्दिक बधाई प्रेषित है आपको आदरणीया आभा जी
आदरणीया Amita Tiwari जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका
आदरणीय sushil sarna जी नमस्कार , आपने मेरी रचना माँ का श्राद्ध को पसंद किया उसके लिए आपका बहुत बहुत शुक्रिया ...
आदरणीय सुरेश कुमार कल्याण जी नमस्कार आपकी मेरी रचना की पसंदगी के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका ....
आदरणीय शिज्जू ठाकुर जी नमस्कार ,आपने मेरी रचना में जो कमी बताई है उसका मैं आगे से ध्यान रखने कि कोशिश करुँगी आभार आपका
आदरणीय समर कबीर जी आपने मेरी रचना माँ का श्राद्ध को पसंद किया उसके लिए मैं आपकी ह्रदय से आभारी हूँ .इसी तरह स्नेह भाव बनाये रखियेगा ..शुक्रिया ..
आदरणीय कल्पन्ना भट्ट जी आपने मेरी रचना को पढ़ा और सराहा उसके लिए मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ आभार आपका
दिल पर लगी
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