दरवाजों पर ताले रखना
चाबी जरा संभाले रखना।
ठंडी होगयी चाय सुबह की
पानी और उबाले रखना।
संसद में घेरेंगे तुझको
तू भी प्रश्न उछाले रखना।
गाँवों का सावन है फीका
नीम पर झूले डाले रखना।
चिडियों की चीं चीं खेतों में
कुछ गौरैयाँ पाले रखना|
दूर ना होना अपनों से तू
रिश्ते सभी संभाले रखना।
...आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
....आभा
Comment
आदरणीय आशीष सिंह ठाकुर जी नमस्कार मेरी रचना को सराहने के लिए बहुत बहुत शुक्रिया आपका ...
आदरणीया rajesh कुमारी जी शुक्रिया आपका ..आइन्दा इस बात का ख्याल रखूंगी कि बहर का नाम भी लिखा करूं शुक्रिया आपका ..
आदरणीय समर कबीर जी नमस्कार, आपका मैं तहे दिल से आभार व्यक्त करती हूँ जो आपने मेरी इस रचना को सराहा और पसंद किया ....आपके हस्ताक्षर मेरी रचना पर मेरे लिए संबल का काम करते हैं शुक्रिया ...
अच्छी रचना है महोदया आभा सक्सेना जी !!!!
बधाईयां !!!
अच्छी ग़ज़ल हुई है आभा जी जैसा की यहाँ का दस्तूर है ग़ज़ल लिखते हुए बह्र जरूर लिख दिया करें उससे समीक्षा करने में सुविधा होती है | चाबी शब्द ठीक कर लीजियेगा बहुत- बहुत बधाई,
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