नव गीत
बहुत दिनों के बाद
मैंने यह डायरी खोली है।
आज नहीं है तू ओ! सजनी
मैं हूं सागर के बिन तरणी
पंछी बन कैदी हूं घर में
खड़ी हुई ज्यों रेल सफर में
बहुत दिनों के बाद
तेरी यह डायरी खोली है।
पढ़ लेता मैं डायरी पहले
कह देता जो चाहे कहले
घुट घुट के न रोने देता
कहा हुआ सब तेरा करता
बहुत दिनों के बाद
मर्म यह डायरी खोली है|
पता चला है आज ही मुझको
कितनी बेचैनी थी तुझको
तभी तो तूने कदम उठाया
आत्म हत्या को जाल लगाया
बहुत दिनों के बाद
राज़ यह डायरी खोली है
एक बार बस कहा तो होता
रंजिश थी गर बताया होता
मैं समझा था कह दोगी तुम
रूठी ना रह पाओगी तुम
बहुत दिनों के बाद
बात यह डायरी खोली है|
पछतावे में हर दिन रहता
मन की बात दबाये रहता
उन अनजानी यादों का डेरा
घेर रहा है हर पल मेरा
बहुत दिनों के बाद
परत यह डायरी खोली है
............................आभा
प्रस्तुत नवगीत मौलिक एवं अप्रकाशित है
Comment
सुन्दर नवगीत ,हार्दिक बधाई आपको आदरणीया आभा जी
अच्छी प्रस्तुति आद० आभा जी बहुत बहुत बधाई
आदरणीय Shyam Narain Verma जी आपकी प्रतिक्रिया मेरे लिए एक संबल का कार्य करती है ...बहुत बहुत आभार आपका ...नमन .. :)
आपकी इस सुंदर प्रस्तुति पर सादर बधाई |
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