मैं जब स्कूल से आयी तो देखा बिशम्भर नाथ जी यानि कि मेरे चाचा जी मेरे सगे चाचा जी ड्राइंग रूम में बैठे माँ के साथ बतिया रहे थे। वही पुरानी खानदान की बातें, पुराने बुआ दादी के किस्से । मैंने देखा उन्होंने कनखियों से एक नज़र मुझ पर भी डाली है।
‘‘बेटा इधर आओ देखो चाचा जी आये हैं’’ मैं माँ की बात को अनसुना करके अपने कमरे में चली गयी। आज मुझे ‘चाचाजी’ शब्द से ही घृणा हो रही थी। जिनकी गोदी में मैं बचपन से खेलती आयी हूं जिनके लिये मैं हमेशा उनकी छोटी सी गुड़िया रही वही इस गुड़िया के शरीर से खेलना चाह रहे थे। छीः मुझे अपने आप से ही घृणा हो रही थी। मैं आज स्कूल से आने के बाद माँ को सब कुछ साफ साफ बताने ही वाली थी कि आज फिर से चाचा जी मौके की ताक़ में हमारे घर आ गये थे। मैंने ड्राइंग रूम में झांका तो देखा माँ और चाचा जी चाय पी रहे थे शायद माँ ने पकौड़े भी बनाये थे साथ में, जो कि वह हमेशा बनाया करतीं हैं।
मैं ड्राइंग रूम में गयी और चाचा जी हाथ के कप को झटके से हवा में उछाल दिया। मालूम नहीं चाय कितनी गर्म थी या फिर ठंडी हो गयी थी।
‘‘माँ आपको मालूम भी है ये आपका देवर और मेरा चाचा नहीं है यह तो एक बहशी जानवर है मालूम है इसने कल जब आप पड़ौस में गयीं थीं तब क्या किया यह हमारे घर आया था और इसने मौका पाकर किचिन में मुझे पीछे से पकड़ लिया था। मैं तो इसके लिये चाय बना रही थी। मुझे क्या मालूम था कि उसके मन में मेरे लिये इतनी गन्दी भावना है। वह तो किचिन का बाहर वाला दरवाजा खुला हुआ था मैं तुरन्त बाहर आ गयी वरन,.......। माँ को तो जैसे समझ ही नहीं आ रहा था कि ये अचानक क्या हो गया।
मैंने माँ का इन्तजार नहीं किया बल्कि दादा जी की छड़ी उठा कर उन्हें वहीं पीटना शुरू कर दिया और गेट के बाहर तक खदेड़ दिया। मुझे लग रहा था कि आज हमारे घर की मजबूत दीवारें कहीं से दरक गयीं हैं।
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आभा.....अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीया आभा जी ..बर्तमान समाज में इस तरह के किस्से रोज सुनने को मिल रहे हैं ..समाज में व्याप्त दरिन्दगी को उजागर करती इस शसक्त लघु कथा के लिए ढेर सारी बधाई स्वीकार करें सादर
आद० आभा जी ,आपकी कोई पहली लघु कथा पढ़ रही हूँ आज कल किसी की नीयत का कोई भरोसा ही नहीं रहा लडकियाँ अपने घर में ही सुरक्षित नहीं हैं |यहाँ आप आयोजन की लघु कथाएं पढ़ें एक आलेख भी है आद० योगराज जी का आपको उससे बहुत मदद मिलेगी आप अच्छी लघु कथा लिख सकती हैं मुझे विश्वास है \फिलहाल इस प्रस्तुति के लिए हार्दिक बधाई |
आदरणीय योगराज प्रभाकर जी नमस्कार ,आदरणीय आपने मेरी लघु कथा को पढ़ा तथा निःस्वार्थ भाव से जो कमियां बताईं मुझे अच्छा लगा ...आगे अच्छी लघु कथाएं लिखने का प्रयास जारी रहेगा
धन्यवाद
अच्छी लघुकथा कही है आ० आभा सक्सेना जी, दुर्भाग्य से रिश्तों को शर्मसार करने वाली ऐसी घटनाएँ अब अक्सर सुनने पढने को मिल जाती हैI लघुकथा में निहित भाव बहुत अच्छा है, जिस हेतु हार्दिक प्रेषित हैI लेकिन लघुकथा में कसावट की कमी साफ़ झलक रही है, इसे और कसा जाना चाहिए थाI अनावश्य बातों से लघुकथा ढीली पद जाती है, शब्दों का चयन एवं उपयोग बेहद सावधानी से किया जाए तभी लघुकथा पूर्ण प्रभाव छोड़ने में सफल होती हैI
//बिशम्भर नाथ जी यानि कि मेरे चाचा जी मेरे सगे चाचा// यहाँ केवल मेरे चाचा कहने से काम चल सकता थाI
//शायद माँ ने पकौड़े भी बनाये थे साथ में, जो कि वह हमेशा बनाया करतीं हैं।// इतनी संजीदा कथा और बीच में पकौड़े? पकौड़ों का ज़िक्र करने की यहाँ क्या तुक बनती है?
लघुकथा पढने वाला यह प्रश्न भी कर सकता है कि चाचा की हरकत के बारे में बेटी ने माँ को पहले क्यों नहीं बतायाI कृपया इन बातों का संज्ञान अवश्य लें I
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