चले बराती मेघ के ,गरज तरज के साथ |
ओलों ने नर्तन किये ले हाथों में हाथ |1|
आँखों में जब आ गए अश्रु की तरह मेघ |
रोके से भी न रुके तीव्र है इनका वेग |2|
सूर्य किरण हैं कर रहीं नदिया में किल्लोल |
चमक दमक से हो रहा जीवन भी अनमोल |3|
आभा
अप्रकाशित एवं मौलिक
Comment
आदरणीया आभा सक्सेना जी सादर सुंदर दोहे रचे हैं आपने. आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ने तुक पर ध्यान दिलाया ही है. प्रथम दोहे के तीसरे चरण को भी देख लें ....... ओलों ने नर्तन किये/ किया. सादर.
आदरणीय समर कबीर जी नमस्कार ,
आपने मेरे सृजन को पढ़ा सराहा उसके लिए हार्दिक अभिनन्दन आपका ...
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी नमस्कार ,
आपने मेरे दोहों को पढ़ा सराहा उसके लिए मैं आपका हार्दिक अभिनन्दन करती हूँ ...आपने जिस ओर ध्यान दिलाया है उसका मैं आगे से जरूर ख्याल रखूंगी ..आभार आपका ..
आदरनीया आभा जी , अच्छे दोहे हुये हैं , हार्दिक बधाई । दूसरा दोहा --
आँखों में जब आ गए अश्रु की तरह मेघ |
रोके से भी न रुके तीव्र है इनका वेग | मेध और वेग की तुकांतता सही नही है -
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