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पडौसी देश के नाम [ कुण्डलियाँ छंद ]

मेरे घर की आग में,,सेंक रहा है हाथ

दूत बने शैतान के , देता उनका साथ

देता उनका साथ ,लगा मति पर  है ताला

ड्रेगन धुन पर नाच ,करे होकर बेताला

जग पर जाहिर आज ,सभी मंसूबे तेरे

छोड़ लगाना आग ,बाज आ भाई मेरे

 

 

छोड़ें ढुलमुल रीत को ,अब उँगली लें मोड़

रोग पुराना हो रहा ,खोजें दूजा तोड़

खोजें दूजा तोड़ ,नहीं अब मीठी गोली

बातें जफ्फी खूब ,खूब समझाइश हो ली

हमको सकता बाँट ,ख़्वाब उसका ये तोड़ें

सच में हों गंभीर ,महज बातों को छोड़ें

 

मौलिक व् अप्रकाशित   

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Comment by pratibha pande on September 3, 2016 at 1:27pm

हार्दिक आभार आदरणीय विजय निकोरे जी... सादर 

Comment by pratibha pande on September 3, 2016 at 1:26pm

हार्दिक आभार आदरणीया कांता जी 

Comment by vijay nikore on August 22, 2016 at 4:06pm

अति सुन्दर रचना के लिए बधाई, आदरणीया प्रतिभा जी

Comment by kanta roy on August 16, 2016 at 12:21pm

देता उनका साथ ,लगा मति पर  है ताला

ड्रेगन धुन पर नाच ,करे होकर बेताला--वाह ! वाह ! बहुत  ही  बढ़िया तंज है  ये . 

हमको सकता बाँट ,ख़्वाब उसका ये तोड़ें

सच में हों गंभीर ,महज बातों को छोड़ें---बेहद  खुबसूरत सीख  देती  हुई  पंक्तियाँ है  आपकी  आदरणीया  प्रतिभा  जी ,बधाई आपको 

Comment by pratibha pande on July 26, 2016 at 8:07pm

आपका हार्दिक आभार  आदरणीया कल्पना जी 

Comment by pratibha pande on July 26, 2016 at 8:04pm

प्रयास पर आपका अनुमोदन व् उत्साहवर्धन मेरे लिए बहुत मायने रखता है ,आपका हार्दिक आभार आदरणीय गिरिराज भंडारी जी ...सादर  


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on July 25, 2016 at 9:39am

आदरणीया प्रतिभा जी , वरतमान स्थिति पर लाजवाब कुँडलिया रचना की है आपने । हार्दिक बधाइयाँ । और इस सोच के लिये साधु वाद आपको ।

Comment by KALPANA BHATT ('रौनक़') on July 22, 2016 at 5:27pm

सुंदर छंद लिखे है आदरणीया दी | बधाई स्वीकारें | 

Comment by pratibha pande on July 22, 2016 at 11:22am

आपने इस ब्लॉग पोस्ट पर आकर प्रयास के मर्म का अनुमोदन किया और उत्साहवर्धन किया आपका हार्दिक आभार आदरणीय रवि प्रभाकर जी 

Comment by pratibha pande on July 22, 2016 at 11:14am

प्रयास की सराहना व् उत्साहवर्धन हेतु आपका हार्दिक  आभार आदरणीय अशोक कुमार रक्ताले जी ..सादर 

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