For any Query/Feedback/Suggestion related to OBO, please contact:- admin@openbooksonline.com & contact2obo@gmail.com, you may also call on 09872568228(योगराज प्रभाकर)/09431288405(गणेश जी "बागी")

पहले के जमाने में कुटनी औरते आती थीं और आपका सारा भेद लेकर चली जाती थी। आज भी यह परम्परा बरकरार है। कुछ औरतों का काम है कि अन्य घरों का समाचार लेकर अपने इच्छित स्थानों पर पहुंचाती हैं।और उसके द्वारा संबंधित व्यक्ति का मनमाना नुकसान करती हैं। क्या आज के समाज में ऐसे लोगों का बहिष्कार संभव नहीं है? यदि आप ऐसों से बच जाते हैं तो आगे आप का भला ही भला है।ी
एक ऐसी ही कहानी है कुटनी की जो हमारे गांव की है और आये दिन किसी न किसी के घर में हंगामा बरपा कर ही चैन लेती है। नाम है उसका रेशमी काकी। रेशमी काकी जब तक दो चार घर घूम नहीं लेती हैं तब तक वे नाश्ता नहीं करती हैं।
वे राम नाथ के घर में गई और उसके बहू से कहा कि तुम्हारी सास कहां हैं। बहू ने जवाब दिया वे बाजार गई हैं। यह सुनकर काकी बैठ गई और कहने लगी कि आज कल तुम्हारी सास घर के काम में ज्यादा ध्यान दे रही हैं। क्या तुम्हारे पति के यहां से पैसा आया है? तुम उसके खर्च पर ध्यान देना क्योकि अधिक खर्च से नुकसान होगा और आगे के दिनों में तुम्हें परेशानी का सामना करना प ड़ेगा। बहू कुछ न बोली । थोड़ी देर इधर-उधर की बाते करके काकी अपने घर चली गई। मौलिक व अप्रकाशित
उधर जब सास लौटी तो बहू ने पूछा कि बाजार से क्या-क्या लायी हैं। सास ने कुछ सामानों के बारे में बताया । परंतु सास के मन में शंका हो गयी । जो बहू आज तक कुछ न हीं बोलती थी। आज बाजार के बारे में कैसे पूछ बैठी। उन्होंने पूछा कि कोई आदमी आया था। बहू ने बताया कि रेशमी काकी आई थी। उन्होंने बाहरीपैसा का ख्याल रखने की बात कही।
यह सुनकर सास ने कहा कि देखा रेशमी काकी की बात पर ध्यान न देना क्योंकि वह ठीक औरत नहीं है उनका काम है इधर की बात उधर करना जिससे घर बिगड़ जाय। बहु का मुंह यह सुनकर रूंआसा हो गया उसे बेहद अफसोस हुआ। उसने अपने सास से माफी मांग ली। और आगे से उनकी किसी बात पर विश्वास न करने का वचन दिया।
थोड़ी देर बाद रेशमी काकी उनके पास आयी और सास से इधर उधर की बात के बाद बाहर से आये पैसा की बात डाली ।सास के यह सुनकर बदन में आग लग गयी लेकिन संयम के साथ जवाब दिया कि देखो काकी मेरे बेटे और बहुएं इतनी समझ दार है कि उन्होंने किसी भी पैसा का आज तक मुझसे हिसाब नहीं लिया। मुझे जो इच्छा करती वही खरीदती बेचती हूं। मेरा हाथ अभी तक किसी ने नहीं पकड़ा है। यह सुनकर रेशमी काकी मन ही मन लज्जित हो गयी।

 मौलिक व अप्रकाशित

Views: 336

Comment

You need to be a member of Open Books Online to add comments!

Join Open Books Online

कृपया ध्यान दे...

आवश्यक सूचना:-

1-सभी सदस्यों से अनुरोध है कि कृपया मौलिक व अप्रकाशित रचना ही पोस्ट करें,पूर्व प्रकाशित रचनाओं का अनुमोदन नही किया जायेगा, रचना के अंत में "मौलिक व अप्रकाशित" लिखना अनिवार्य है । अधिक जानकारी हेतु नियम देखे

2-ओपन बुक्स ऑनलाइन परिवार यदि आपको अच्छा लगा तो अपने मित्रो और शुभचिंतको को इस परिवार से जोड़ने हेतु यहाँ क्लिक कर आमंत्रण भेजे |

3-यदि आप अपने ओ बी ओ पर विडियो, फोटो या चैट सुविधा का लाभ नहीं ले पा रहे हो तो आप अपने सिस्टम पर फ्लैश प्लयेर यहाँ क्लिक कर डाउनलोड करे और फिर रन करा दे |

4-OBO नि:शुल्क विज्ञापन योजना (अधिक जानकारी हेतु क्लिक करे)

5-"सुझाव एवं शिकायत" दर्ज करने हेतु यहाँ क्लिक करे |

6-Download OBO Android App Here

हिन्दी टाइप

New  देवनागरी (हिंदी) टाइप करने हेतु दो साधन...

साधन - 1

साधन - 2

Latest Activity

Sushil Sarna posted a blog post

दोहा पंचक. . . . .

दोहा पंचक  . . . .( अपवाद के चलते उर्दू शब्दों में नुक्ते नहीं लगाये गये  )टूटे प्यालों में नहीं,…See More
15 hours ago

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर updated their profile
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, मेरे प्रयास को मान देने के लिए हार्दिक आभार.. बहुत बहुत धन्यवाद.. सादर "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय। "
Sunday

सदस्य टीम प्रबंधन
Saurabh Pandey replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आपका हार्दिक आभार, आदरणीय"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय सौरभ पांडेय सर, बहुत दिनों बाद छंद का प्रयास किया है। आपको यह प्रयास पसंद आया, जानकर खुशी…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय आदरणीय चेतन प्रकाशजी मेरे प्रयास को मान देने के लिए बहुत बहुत धन्यवाद। हार्दिक आभार। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय चेतन प्रकाश जी, प्रदत्त चित्र पर बढ़िया प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक बधाई। सादर।"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीया प्रतिभा जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करती मार्मिक प्रस्तुति। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday

सदस्य कार्यकारिणी
मिथिलेश वामनकर replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम जी, प्रदत्त चित्र को शाब्दिक करते बहुत बढ़िया छंद हुए हैं। इस प्रस्तुति हेतु हार्दिक…"
Sunday
pratibha pande replied to Admin's discussion 'ओबीओ चित्र से काव्य तक' छंदोत्सव अंक 155 in the group चित्र से काव्य तक
"आदरणीय दयाराम मथानी जी छंदों पर उपस्तिथि और सराहना के लिये आपका हार्दिक आभार "
Sunday

© 2024   Created by Admin.   Powered by

Badges  |  Report an Issue  |  Terms of Service