मेरी तालीम का मुझ पर असर है,
जो तेरे सामने झुकती नज़र है ।
बिना गलती के माँगूं मैं मुआफ़ी,
यही रिश्ते निभाने का हुनर है ।
के जब इंसान पत्थर भी जो मारे,
उसे बदले में फल देता शज़र है ।
हर इक चेहरे पे नक़ली मुस्कुराहट,
बड़े फनकार लोगों का शहर है ।
अमीरी में भी कितने ग़म है तुमको,
किसी की बददुआओं का कहर हैं ।
के पूरी हो ही जाती हर तमन्ना,
मेरे अल्लाह की मुझ पर मेहर है ।
मुझे मंज़िल मिलेगी एक न एक दिन,
इसी उम्मीद में कटता सफ़र है ।
बड़ा शायर बना फिरता है देखो,
वही "अम्बेश" जो अब दरबदर है ।
::::
अम्बेश तिवारी "अम्बेश"
"मौलिक एवं अप्रकाशित"
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