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बहर :- 2212 2212 2212 2212
(हरिगीतिका छंद)

अनमोल क्षण जीवन के जो मन में बसा हरदम रखें,
जो जिंदगी के खाश पल उर से लगा हरदम रखें।

जिन याद से मस्तक हमारा शान से ऊँचा उठे,
उन याद के ख्वाबों को सीने में जगा हरदम रखें।

सन्तोष जो हमको मिला जब स्वप्न पूरे थे हुए,
उन वक्त के रंगीन लमहों को बचा हरदम रखें।

जब कुछ अलग हमने किया सबने बिठाया आँख पे,
उन वाहवाही के पलों को हम सजा हरदम रखें।

जो आग दुश्मन ने लगाई देश में आतंक की,
उस आग के शोलों को हम दिल में दबा हरदम रखें।

जो भूख से बिलखें सदा है पास जिनके कुछ नहीं,
उनके लिये कुछ कर सकें ऐसी दया हरदम रखें।

छाए उदासी मन में जब अच्छा 'नमन' कुछ ना लगे,
अनमोल पल की याद का दिल में मजा हरदम रखें।

मौलिक व अप्रकाशित

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Comment by Dr Ashutosh Mishra on November 7, 2016 at 7:18pm
आदरणीय बासुदेव जी उम्दा रचना पर हार्दिक बधाई आदरणीय समर दिर के मशविरे पर ध्यान दीजियेगा
Comment by बासुदेव अग्रवाल 'नमन' on November 5, 2016 at 11:28am
आदरणीय समर कबीर जी आपके प्रोत्साहन का हार्दिक धन्यवाद। आपका सुझाव सर आँखों पर। में उन शेरों को अलग तरह से कहने की पूरी कोशिस करूंगा।
Comment by Samar kabeer on November 4, 2016 at 5:35pm
जनाब वासुदेव अग्रवाल'नमन'जी आदाब,घक्सल अच्छी है,बधाई स्वीकार करें ।
'उन'की तकरार तीन शैरों में है जिसमें एक ही जगह चौथे शैर में सही लगती है,बाक़ी के दो शैरों में खटक रही है,देखें ।

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