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गीत लिखो कोई ऐसा --(गीत)-- मिथिलेश वामनकर

गीत लिखो कोई ऐसा जो निर्धन का दुख-दर्द हरे।

सत्य नहीं क्या कविता में,  

निर्धनता का व्यापार हुआ?

 

जलते खेत, तड़पते कृषकों को बिन देखे बिम्ब गढ़े।

आत्म-मुग्ध होकर बस निशदिन आप चने के पेड़ चढ़े।

जिन श्रमिकों की व्यथा देखकर क्रंदन के नवगीत लिखे।

हाथ बढ़ा कब बने सहायक, या कब उनके साथ दिखे?

इन बातों से श्रमजीवी का

बोलो कब उद्धार हुआ?

 

अपनी रचना के शब्दों को, पीड़ित की आवाज कहा।

स्वयं प्रचारित कर, अपने को धनिकों से नाराज कहा।

जीवन भर उन धनवानों से पुरस्कार, सम्मान लिए ।

निर्धन से उपकार जताकर, अपने तम्बू तान लिए ।

पर-पीड़ा से नाम कमाया,

ये कैसा उपकार हुआ ?

 

बाहर घटित हो रहा जो भी, वो कवि के भी भीतर हो।

ना हो कल्पित जाल शब्द के, सिर्फ समय का उत्तर हो।

रूपक, बिम्ब, प्रतीकों में बस उलझाया है कविता को।

जन-जन प्रिय थी लेकिन छोड़ा क्यों छंदों की सरिता को?

इतने क्लिष्ट चयन से केवल

उलझन का विस्तार हुआ।

 

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(मौलिक व अप्रकाशित)  © मिथिलेश वामनकर 
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Comment

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सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 20, 2017 at 12:16am

आदरणीय गिरिराज सर, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on January 19, 2017 at 11:58pm

आदरणीय मिथिलेश भाई , गरीब , कुचले हुओं और किसानों  की व्यथा- कथा को गीत मे सार्थक अभिव्यक्ति दी है आपने । हार्दिक बधाइयाँ स्वीकार करें ।


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 3:24pm

आदरणीय रामबली गुप्ता जी, आपको यह प्रयास पसंद आया, मेरा लिखना सार्थक हुआ. अपनी प्रस्तुतियों पर आपका स्नेह पाकर अभिभूत हूँ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 3:22pm

आदरणीय सुरेन्द्र नाथ जी, आपका अनुमोदन आश्वस्तकारी है. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 3:21pm

आदरणीय बृजेश कुमार जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 3:21pm

आदरणीय समर कबीर जी, आपकी प्रशंसा मेरे लिए बहुत महत्त्व रखती है. गीत आपको पसंद आया, मेरा लिखना सार्थक हो गया. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 3:16pm

आदरणीय रोहिताश्व मिश्रा जी, इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. आपकी प्रतिक्रिया देवनागरी में होती तो और भी ख़ुशी होती. यदि आप हिंदी टायपिंग सम्बन्धी कोई जानकारी चाहें तो इस लिंक पर उपलब्ध है-

http://www.openbooksonline.com/forum/topics/5170231:Topic:27913

यहाँ उपलब्ध जानकारी के आधार पर आप अपने कंप्यूटर को हिंदी टाइपिंग फ्रेंडली बना सकते हैं.

सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 2:52pm

आदरणीय शेख शहजाद उस्मानी जी, आपको गीत पसंद आया जानकर ख़ुशी हुई. महा-उत्सव के पहले गीत पूरा नहीं कर सका था केवल एक बंद हुआ था. वैसे प्रस्तुति का सन्देश भविष्य के लिए भी उतना ही प्रासंगिक होगा, ऐसा मुझे लगता है. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by मिथिलेश वामनकर on January 18, 2017 at 2:49pm

आदरणीय सुशील सरना सर, आपकी प्रशंसा पाकर आश्वस्त हुआ हूँ. इस प्रयास की सराहना और उत्साहवर्धक प्रतिक्रिया के लिए हार्दिक आभार आपका. बहुत बहुत धन्यवाद. सादर 

Comment by रामबली गुप्ता on January 18, 2017 at 6:54am
वाह क्या बात है। ज्यादा क्या कहूँ आद0 भाई मिथिलेश जी आजकल आपके गीतों की जो लड़ी मंच पर आ रहीं हैं वे सभी प्रासंगिक होने के साथ साथ एक से बढ़कर एक सुंदर भावपूर्ण और प्रवाहपूर्ण हो रही हैं। पढ़ने में इतना रोचक की कई बार पढ़कर भी मन न भरे। इस शानदार गीत के लिए हार्दिक बधाई स्वीकार करें।

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