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कितने अच्छे थे मेरा ऐब बताने वाले
वो मेरे दोस्त मुझे रस्ता दिखाने वाले
वक्त ने, काश! उन्हें रुकने दिया होता ज़रा
साथ ही छोड़ गए साथ निभाने वाले
मुफ़लिसी मक्र की छाई है सियाही अब भी
पर बताओ हैं कहाँ शम्अ जलाने वाले
अपने क़ातिल से शिकायत नहीं कोई मुझको
कर गए ग़र्क मेरी कश्ती, बचाने वाले
खूब तासीर नज़र आई मुहब्बत की यूँ
रो पड़े जाँ को मेरी फ़ैज़ उठाने वाले
एकता टूटने पाए न कभी, मसनद पर
आके बैठे हुए हैं हमको लड़ाने वाले
अपना इतिहास बताओ तो सही पहले तुम
दुनिया को देश का इतिहास बताने वाले
-मौलिक व अप्रकाशित
Comment
बहुत बहुत शुक्रिया आ. विजय निकोर सर
बहुत बहुत शुक्रिया आ. रवि भैया
बहुत बहुत शुक्रिया आ. सुशील सरना सर
हार्दिक आभार आ. नरेंद्र सिंह चौहान जी
बहुत बहुत शुक्रिया आ, अर्पणा जी
आ. अनुराग जी रचना को समय देने के लिए आपका आभार, सुझाव हेतु शुक्रिया
आ. निलेश जी बेहतर करने का प्रयास करूँगा, नवाज़िशों के लिए शुक्रिया
//वक्त ने, काश! उन्हें रुकने दिया होता ज़रा
साथ ही छोड़ गए साथ निभाने वाले//
बहुत ही खूबसूरत गज़ल ... आनन्द आ गया। बधाई, आदरणीय शिज्जु जी
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