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रेत पर फूल खिलाने आये (ग़ज़ल)

2122 1122 22

रेत पर फूल खिलाने आये
दश्त में कितने दीवाने आये

मिल गया राह में बचपन का यार
याद फिर गुज़रे ज़माने आये

धूप के पंख निकल आये जब
कुछ शजर जाल बिछाने आये

एक दिन बेखुदी जो ले डूबी
तब मेरे होश ठिकाने आये

वक़्त-बेवक्त भड़क कर आँसू
ग़म की सरकार गिराने आये

नाम लिक्खा था किसी का उनपर
किसी के हिस्से में दाने आये

दिल का दरवाज़ा खुला ही रक्खो
किस घड़ी कौन न जाने आये

आया है हिज्र का फिर से त्यौहार
अश्क़ फिर धूम मचाने आये

देखो-देखो ये सितारे कैसे
रात की माँग सजाने आये

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by जयनित कुमार मेहता on May 30, 2017 at 8:29pm
बहुत बहुत धन्यवाद आपका, आदरणीय गुरप्रीत सिंह जी।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 30, 2017 at 8:29pm
आदरणीय विजय जी, आपको ग़ज़ल अच्छी लगी, मुझे ये जानकर बहुत अच्छा लगा। बहुत बहुत आभार आपका।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 30, 2017 at 8:28pm
आदरणीय ब्रजेश कुमार जी,हार्दिक धन्यवादी हूँ आपका।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 30, 2017 at 8:27pm
आपकी प्रतिक्रिया के बिना मेरी हर रचना अधूरी रहती है आदरणीय सतविंद्र कुमार जी। हार्दिक साधुवाद आपको।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 30, 2017 at 8:25pm
आपके उद्गारों से हृदय फूला नहीं समा रहा आदरणीय अनुराग वशिष्ठ जी। हार्दिक आभारी हूँ आपका।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 30, 2017 at 8:24pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, आपके इस उत्साहवर्धन से मेरा हौसला बढ़ा है, तथा मेरा श्रम सार्थक हो गया लगता है। दिली शुक्रगुज़ार हूँ आपका।।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 30, 2017 at 8:23pm
आपका हार्दिक धन्यवाद आदरणीय नवीन मणि त्रिपाठी जी।
Comment by जयनित कुमार मेहता on May 30, 2017 at 8:22pm
आदरणीय नीलेश जी, रचना पर आपके आगमन व उचित मार्गदर्शन हेतु हार्दिक आभारी हूँ आपका। मैं उक्त मिसरे को सुधारने की कोशिश करता हूँ। सादर।।
Comment by Gurpreet Singh jammu on May 19, 2017 at 1:55pm

बहुत अच्छी ग़ज़ल हुई है आदरणीय जयनित जी 

Comment by vijay nikore on May 19, 2017 at 6:59am

//मिल गया राह में बचपन का यार
याद फिर गुज़रे ज़माने आये//

बहुत अच्छी गज़ल लिखी है। बधाई।

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