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ग़ज़ल - किस्से कहानी हो गए

२१२२ २१२२ २१२२ २१२ 

छोड़कर हमको किसी की जिंदगानी हो गए

ख्वाब आँखों में सजे सब आसमानी हो गए

 

प्रेम की संभावनाएँ थीं बहुत उनसे, मगर,

जब मिलीं नजरें परस्पर,शब्द पानी हो गए

 

वो उगे थे जंगलों में नागफनियों की तरह,

आ गए दरबार में तो रातरानी हो गए

 

सत्य का था बोलबाला, त्याग था, सद्भाव था,

आज के युग में सभी किस्से कहानी हो गए

 

चीज क्या है जिंदगी ये, जब समझ पाए जरा,  

वो भी फानी हो गए, हम भी फानी हो गए

मौलिक एवं अप्रकाशित

Views: 784

Comment

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Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2017 at 9:45am

आदरणीय गिरिराज भंडारी जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2017 at 9:44am

आदरणीय Ravindra Pandey जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 24, 2017 at 9:44am

आदरणीय Ravindra Pandey जी आपकी हौसला अफजाई के लिए ह्रदय से शुक्रिया 


सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on May 23, 2017 at 9:57pm

आदरनीय बसंत भाई , बहुत अच्छी ग़ज़ल कही है , बधाइयाँ स्वीकार करें ।

Comment by Ravindra Pandey on May 23, 2017 at 6:27pm

waah......ham bhi fani ho gaye....

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 3:55pm

आदरणीय Gajendra shrotriya जी बहुत बहुत शुक्रिया आपका, हौसला अफजाई के लिए 

Comment by Gajendra shrotriya on May 23, 2017 at 3:18pm
वाह!बहुत खूब।
वो उगे थे जंगलों में नागफनियों की तरह,
आ गए दरबार में तो रातरानी हो गए
सत्य का था बोलबाला, त्याग था, सद्भाव था,
आज के युग में सभी किस्से कहानी हो गए
चीज क्या है जिंदगी ये, जब समझ पाए जरा,
वो भी फानी हो गए, हम भी फानी हो गए
उम्दा कहन के लिए बहुत बधाई।
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 1:23pm

आदरणीय Anuraag Vashishth  जी आपकी हौसला अफजाई के लिए बहुत बहुत शुक्रिया 

Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 9:18am
Comment by बसंत कुमार शर्मा on May 23, 2017 at 9:17am

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