लोकतंत्र के दड़बे में
मुर्गी जब से मोर हो गई
सावन ही सावन दिखता है
सब कुछ मनभावन दिखता है |
लोकतंत्र के पिंजड़े में
कौए जब से कैद हो गए
टांय-टांय का टेर लगाते
सब कुछ मनभावन बतलाते |
लोकतन्त्र के फुटपाथों पर
दाना खाता श्वेत कबूतर
बस कूहू-कूहू गाता है
सब मधुर-मधुर बतलाता है |
लोकतन्त्र के हरे पेड़ पर
कठफोड़वा हो गया कारीगर
“अहं-बया” चिल्लाता है
सब कुछ अच्छा बतलाता है |
लोकतन्त्र के तालाबों में
बगुले सारे हँस हो गए
खत्म सभी विध्वंस हो गए
सब कुछ तो अच्छा दिखता है |
लोकतन्त्र के बंजर खेतों में
चिड़िया खोद रही है चारा
बाज गगन में उड़े आवारा
सब कुछ तो अच्छा दिखता है |
सोमेश कुमार (मौलिक एवं अप्रकाशित )
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