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भ्रष्टाचार के विरोध में हम भी खड़े हैं इस छोटी सी कविता के साथ

 

विरोध कायम रहे
इसके लिए जरूरी है
कि कायम रहे
अणुओं का कंपन

अणुओं का कंपन कायम रहे
इसके लिए जरूरी है
विद्रोह का तापमान

वरना ठंढा होते होते
हर पदार्थ
अंततः विरोध करना बंद कर देता है
और बन जाता है अतिचालक

उसके बाद
मनमर्जी से बहती है बिजली
बिना कोई नुकसान झेले
अनंत काल तक

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Comment

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Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 11:17pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय बागी जी

Comment by धर्मेन्द्र कुमार सिंह on July 15, 2015 at 11:16pm

बहुत बहुत शुक्रिया आदरणीय सौरभ जी। स्नेह बना रहे।


मुख्य प्रबंधक
Comment by Er. Ganesh Jee "Bagi" on June 6, 2011 at 7:29pm
बहुत बढ़िया धर्मेन्द्र भाई, इस अभियन्त्रिक कविता पर बहुत बहुत बधाई और १०० मिलियन इलेक्ट्रान आपको फ्री | :-)

सदस्य टीम प्रबंधन
Comment by Saurabh Pandey on June 6, 2011 at 1:50pm

इलेक्ट्रोमैगनेटिक कविता के लिये बहुत-बहुत बधाई.

सही है कि हर पदार्थ ठण्ढा हो कर अति(सु)चालक बन अपने विद्रोही-गुण से भटक जाता है. हम स-समाज ठण्ढों की श्रेणी में ढाले जा रहे हैं.. अनवरत.. सदियों से. षडयंत्रकारियों की यही कोशिश हमें रीढ़हीन बना गयी है. और आज हम हर उस घटना को संदेह की दृष्टि से देखते हैं जो हमारे सामने घटती है. या लिजलिजों की तरह निर्लिप्तता को प्राप्त हुये रहते हैं.

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