डिग्री धारी एक कवि ने पूछा इक बेडिग्रे से
कैसे लिखते हो कविताएँ दिखते तो बेफिक्रे से।
अलंकार रस छंद वर्तनी कैसे मैनेज करते हो
करते हो कुछ काट - चिपक या फिर अपना ही धरते हो।
पिंगल और पाणिनि को पढ़ मैं तो सोचा करता हूँ,
मात्रिक वार्णिक वर्णवृत्त मुक्तक में लोचा करता हूँ।
यति गति तुक मात्रा गण आदि सभी अंगों को ढो लाते
जरा बताओ ज्ञान कहाँ से इतने सब कुछ का पाते?
-- तब बेचारे हकबकाए क्वैक कवि ने उत्तर दिया --
भाई मैंने आज ही जाना इतने छंदों के हैं नाम
अपना दर्शन सीखते जाना बाकी बातों से क्या काम।
खेत शहर जंगल या दरिया सब हैं ज्ञान प्राप्ति के धाम
जहाँ हो जाना वहीँ सीखना सबको करते दुआ सलाम।
(मौलिक व अप्रकाशित)
Comment
आदरनीय श्याम भाई , इस प्रस्तुति के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । रचना विधा को क्या नाम दें मुझे भी समझ नही आया , क्या इसे अतुकांत कविता कह सकते हैं ?
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