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डिग्री धारी एक कवि ने पूछा इक बेडिग्रे से

कैसे लिखते हो कविताएँ दिखते तो बेफिक्रे से।

अलंकार रस छंद वर्तनी कैसे मैनेज करते हो

करते हो कुछ काट - चिपक या फिर अपना ही धरते हो।

पिंगल और पाणिनि को पढ़ मैं तो सोचा करता हूँ,

मात्रिक वार्णिक वर्णवृत्त मुक्तक में लोचा करता हूँ।

यति गति तुक मात्रा गण आदि सभी अंगों को ढो लाते

जरा बताओ ज्ञान कहाँ से इतने सब कुछ का पाते?

-- तब बेचारे हकबकाए क्वैक कवि ने उत्तर दिया --

भाई मैंने आज ही जाना इतने छंदों के हैं नाम

अपना दर्शन सीखते जाना बाकी बातों से क्या काम।

खेत शहर जंगल या दरिया सब हैं ज्ञान प्राप्ति के धाम

जहाँ हो जाना वहीँ सीखना सबको करते दुआ सलाम।

(मौलिक व अप्रकाशित)

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Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 24, 2017 at 6:23pm
आदरणीय गिरिराज भंडारी जी, सादर नमस्कार। प्रोत्साहित करने के लिए हार्दिक आभार व्यक्त करता हूँ।
क्षमा कीजिएगा मुझे कविता की तकनीकी जानकारी थोड़ी भी नहीं है, बस लिख देता हूँ।

सदस्य कार्यकारिणी
Comment by गिरिराज भंडारी on August 24, 2017 at 12:29pm

आदरनीय श्याम भाई , इस प्रस्तुति के लिये आपको हार्दिक बधाइयाँ । रचना विधा को क्या नाम दें मुझे भी समझ नही आया , क्या इसे अतुकांत कविता कह सकते हैं ?

Comment by श्याम किशोर सिंह 'करीब' on August 24, 2017 at 9:24am
आदरणीय सुरेंद्र जी सादर नमस्कार,दरअसल मुझे कविता रचना के संबंध में तकनीकी ज्ञान थोड़ा भी नहीं है। बस जो दिमाग में बातें आती हैं उनको कैसे भी पद्यरूप में ढालने का प्रयास करता हूँ।
प्रोत्साहन के लिए हार्दिक आभार।
Comment by नाथ सोनांचली on August 24, 2017 at 5:40am
आद0 श्याम किशोर जी सादर अभिवादन, आपकी रचना पर नमन सँग बधाई, एक बात पूछना चाहूँगा, कोई शिल्प विधान भी लिया है क्या?

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"हार्दिक धन्यवाद, आदरणीय."
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"सादर"
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"बात तो उचित है. आप संशोधित रचना यहीं, इसी आयोजन में पोस्ट कर दें, आदरणीय."
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